Tuesday, October 29, 2013

love

समस्त भाव में सबसे महत्वपूर्ण भाव है प्रेम का, होना भी चाहिए सभी एक ही जीवन स्रोत से आयें हैं सभी  की  एक ही खोज है । प्रेम  ही वो झरना है जिसकी धारा हमारे हृदय  से बह  है और हमारी जड़ो को सींच रही वरना हम दिमाग तक ही सीमित रह जाते । दिमाग है शोषक और ह्रदय है पोषक ।जितना व्यक्ति हृदय  से जुड़ा रहता है उतना ही संवेदनशील होता है ।  संवेदनाओ से ही जीवन में रस है, संवेदनहीन  जीवन तो नीरस है ।  प्रेम पाने से ज्यादा महत्वपूर्ण है प्रेम करना क्योंकि प्रेम करने वाला व्यक्ति हृदय चक पर स्वतः ही स्थित हो जाता है उसे ध्यान करने कि आवश्यकता नहीं ।ध्यान और प्रेम कि घटना एक साथ ही घटती है । जिसने प्रेम किया वो ध्यान को उपलब्ध हो गया और जिसने ध्यान किया वो प्रेम को उपलब्ध हो गया । परन्तु हम प्रेम की  भीख माँगते है जब कि हम सम्राट है ।
                            =सीमा आनंदिता

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unconditional love

संसार में केवल एक ही रिश्ता है वो है माँ बेटे का ,जो भी रिश्ता अपनी चरम अवस्था पर पहुँचता है वो माँ बेटे का ही हो जाता है यहाँ तक कि जो पति पत्नी आपस में बहुत प्यार करतें हैं और प्यार कि इस उचांई को छूते हैं वे भी माँ बेटे जैसे हो जाते है इस को ही बे शर्त प्यार(unconditional love ) कहतें हैं । हमारे ऋषि आशीर्वाद देते है ..
पुत्रवती भव :
अंतत ..
तुम्हारा पति ही तुम्हारा पुत्र बन जाए
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Monday, October 28, 2013

yog

अष्टांग योग, सहज योग प्रेम योग या भक्ति योग ये सारे ही अलग अलग मार्ग है उस परम तत्व को पाने के लिए पर सब एक दूसरे के पूरक भी हैं । एक घटता है जब, तब दूसरा अपने आप ही घट जाता है अष्टांग योग में हम शरीर को बाह्य क्रिया से शुद्ध करते हैं | शरीर शुद्ध तो विचार भी शुद्ध हो जाते हैं | सहज योग में हम बुद्धि के द्वारा विचार को शुद्ध करते हैं ,विचार शुद्ध तो शरीर शुद्ध हो जाता है व सारी उर्जा घनीभूत होकर सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश करती है | प्रेम योग या भक्ति योग इसमें हम किसी से इतना प्यार करने लगें कि हमारी सारी और उर्जा एकीकृत होकर ऊर्ध्वगामी हो जाए । हम उसी ऑर खिंचते हैं जो हमसे ज्यादा उर्जावान है धीरे धीरे उर्जा का स्तर एक होने लगता हैं तब दो नहीं एक हो जाते हैं तब द्वैत नहीं रह जाता अद्वैत होता हैं | जहाँ प्रेम है वहां ध्यान की घटना अपने आप ही घट जाती है जहाँ ध्यान है वहां प्रेम घट जाता है। इस प्रकार सब एक दूसरे के पूरक हैं । सहज योग नाम ही है सहज तो सरल तो होगा ही पर जब उम्र ज्यादा हो जाती है तब कोई सहज योग से साधना करता है तो थोडा मुश्किल होता है क्योकि उम्र बदने के साथ शरीर में कार्बन की ज्यादा मात्रा एकत्र हो जाती है जिस कारण शरीर का लचीलापन कम हो जाता है तब उर्जा प्रवाह ऊपर की ओर होना कठिन हो जाता है ,ऐसे में अष्टांग योग का सहारा लेना चाहिए जिस में शरीर शुद्ध होकर लचीला हो जाता है और उर्जा सहज ही ऊर्ध्वगामी होने लगती है और हम धीरे धीरे निर्विचार होकर उस परमतत्व के साथ एकीकृत होने लगते हैं ।
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Sunday, October 27, 2013

sin

पाप पुण्य  का हिसाब परमात्मा नहीं रखता उसके पास इतनी फुरसत  ही नहीं कि वो  एक एक मनुष्य का लेखा  जोखा रखे  । उसके लिए पापी और पुण्यात्मा एक बराबर हैं दोनों के लिए एक सा ही प्यार बरस रहा है यदि वही भेद करने लगा तो काहे का परमात्मा हुआ । अपने पाप और पुण्य  का हिसाब   हम ही स्वयं रखतें है । जब हम कोई ऐसा कार्य करतें हैं जिससे हमें ग्लानि होती है तब  हमारा चेतना  का स्तर नीचे गिर जाता है यही पाप है तो चेतना का स्तर गिरा कि पाप हुआ  और जब हम कोई ऐसा कार्य करतें है जिससे कि चेतना स्तर ऊपर उठ जाता हैं तो यही पुण्य है । भगवान  बुद्ध ने कहा है कि होश में रहकर जो भी कार्य किया जाता है वो पुण्य  है और जो बेहोशी में किया जाए वो पाप है।मूर्छा में किया गया दान भी पाप है  । हर समाज में व  हर काल में  पाप और पुण्य  की,अलग अलग मान्यताएं होती है आज जो मान्य है हो सकता वो पुराने समय में मान्य  न हो या किसी और समाज में मान्य  न हो तब हम उस कार्य को करें तो हमें ग्लानि होगी। जब हम नैसर्गिक  नियमों  से जुड़े होते हैं यानी प्रकृति के नियमों  को मानते है तब हर काल व हर समाज के लिए वहां एक सी ही मान्यताएं होती हैं तब  न पाप होता  न पुण्य जो उचित है वही होता है । चोरी करना पाप हैं पर  यदि कोई भूखा रोटी चुरा रहा है तो पापी वो नहीं है हम सब उसके जिम्मेदार हैं उसके हिस्से का खाना उसको नहीं मिला किसी के पास ज्यादा चला गया प्रकृति सब का पेट भरने के लिए सक्षम हैं ।
                                        - सीमा आनंदिता

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माँ की ममता /mother's love

बांहें फैलाती, मुझको उठाती, सीने से अपने लगाती - वो माँ थी
लोरी सुनाती, सर थपथपाती, मुझे नींद में चूम जाती - वो माँ थी ।


बचपन का मेरे वोही आसमां थी , आँचल था उस का चमन सा
मैं उसकी बगिया का फूल प्यारा ,चन्दा था उस के गगन का
हर शाम छत से, चन्दा दिखाती, माथे पे टीका लगाती- वो माँ थी
लोरी सुनाती, सर थपथपाती, मुझे नींद में चूम जाती - वो माँ थी ।


कभी जो बनाती थी माँ खीर घर में, बड़े प्यार से बाँटती थी
छुट पुट शरारत जो करता कभी तो, मुझे आँखों से डांटती थी
इशारे से मुझ रूठे को फिर मनाती, इक प्याला ज्यादा खिलाती -वो माँ थी
कभी रूठ कर अपना गुस्सा दिखाती, मेरे हंसने से फिर मान जाती -वो माँ थी

                                                                                                  --आनन्द बिहारी

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Saturday, October 26, 2013

sun

सूरज बोला एक दिन पापा से
मुझको भी चाहिए एक छुट्टी ।
चंदा को तो  मिलती पूरी एक छुट्टी
महीने में एक ही दिन आता है वो पूरा
बाकी दिन आता है आधा पौना  और चौथाई
मेरी नहीं है कोई भी छुट्टी
पापा बोले सुन बेटा
अगर तू लेगा छुट्टी
तो हो जाएगी
सब की   छुट्टी
                             सीमा आनंदिता

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Friday, October 25, 2013

infinity

कहीं तो ऐसा आयाम हो जिसमे जाकर मैं खो जाऊं
न समय का आभास हो बस अनंत का विस्तार हो
चाहे हम जी लें कितने साल जीतें हैं सिर्फ चौबीस घंटे
बंधे बंधाएं समय में यूँ ही गुज़र जाता सारा जीवन
अंत समय हाथ में  लगतें हमारें सिर्फ चौबीस घंटे
मुझे चाह उस आयाम की  जहाँ हो
अनंत से  अनंत का मिलन
फिर किसकी मृत्यु कैसी मृत्यु
मृत्यु तो कभी घटी नहीं
जीवन ही जीवन है
मरा तो कोई कभी नहीं
                     सीमा अनंदिता
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god is one

परमात्मा के यहाँ से तो हम सभी बिना लेबल के आतें है संसार में आकर धर्म जाति देश भाषा प्रान्त के लेबल लग जातें हैं। हम इंसान हैं यह लेबल भी, हमारा ही हमें दिया हुआ है ।परमात्मा के यहाँ से तो हम चेतना के अनुसार सृष्टि के प्राणियों से भिन्न हैं। हम में सृष्टि के और प्राणियों से ज्यादा चेतना है ।  पशु पक्षी को तो पता भी नहीं होता कि वे पशु पक्षी हैं  । हमें सब लेबल याद रहतें हैं बस वही भूल जातें हैं जो हमें परमात्मा ने दिया है।उसने हमे चेतना दी है, हमें  अपने आप को पहचानने की । हम  जिंदगी भर सारे लेबल ढोते रहतें हैं जोकि मरते समय यहीं सब भस्म हो जातें हैं।   परमात्मा ने हमे होश दिया है बस हम उस होश को   सतत  बनाए रहें।  उसने हमें चुनाव कि क्षमता  दी  है,चाहे तो  हम ऊर्ध्वगामी  हो जाएं व चाहे तो पतन की और चले जाएं । ये क्षमता सृष्टि के किसी और प्राणी के पास नहीं है ।  पर हम उस क्षमता का  गलत उपयोग करते हैं व  खंड खंड होकर उस उर्ज़ा को नष्ट करतें हैं जो कि हमें अखंड रहतें हुए  ऊर्ध्वगामी कर सकती थी जिससे हम देवता बन सकतें थे । देवता तो छोड़ो इंसान ही बनें रहें तो बहुत बड़ी बात होगी ।ये लेबल हमारे ऊर्ध्वगमन गमन में  सहायक न होकर बाधक हैं । इनको उतार फेंकनें में ही समझदारी है ।
                          -   सीमा अनादिता

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Thursday, October 24, 2013

love

परमात्मा क्या है ? प्रेम की अनंत बूंदों का जोड़ । जब पत्नी अपने पति को प्रेम करती है ,तब बच्चे  उसे अपने पति का पुनर्जन्म मालूम पड़ते हैं । फिर वही शक्ल फिर वही रूप फिर वही निर्दोष आँखें जो उसके पति में छुपी हुईं थीं  फिर से प्रकट हुईं हैं बच्चे को किया गया प्रेम पति को किये गए प्रेम की प्रतिध्वनि है । पति ही फिर से बच्चे के रूप में पवित्र और नया हो कर लौट आया है ।  जब पति अपनी पत्नी को प्रेम करता है तो पत्नी भी उसे परमात्मा दिखाई देती है । बच्चा उस पत्नी का ही लौटता हुआ रूप है । पत्नी को जब पहली दफा देखा था ,तब वो जैसी निर्दोष थी ,तब वो जैसी शांत थी तब वो जैसी सुदर थी, तब उसकी आँखें जैसे झील के तरह थीं । इन बच्चो में फिर वही आँखें लौट के आयीं हैं। इन बच्चों में फिर उसकी पत्नी चेहरा लौट आया है ।  ये बच्चे फिर उसकी छवि में नए होकर आ गए हैं । जैसे पिछले वसंत में फूल खिले थे जैसे पिछले वसंत में पत्ते आये थे । फिर साल बीत गया ।पुराने  पत्ते गिर गए हैं । फिर नयी कोंपले निकल आईं,फिर नए पत्तों से वृक्ष भर गया । फिर लौट आया वसंत । फिर सब नया हो गया है  । जीवन निरंतर लौट रहा है ,निरंतर पुनर्जन्म चल रहा है ।
                                                             osho

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god is here

शिशु तू कितना  सहज व  कितना निश्छल
कोरी तेरी आँखें मौन है तेरी भाषा
भाव ही भाव हैं तेरे पास
उन्मुक्त तेरा हास
इसीलिए सब खिचतें तेरे पास
पर कुछ दिनों बाद
तू भी ऐसा ही हो जायेगा
हम जैसा
काश तू ऐसा ही रह पाता
कोरा और मासूम
                            -    सीमा आनंदिता

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Wednesday, October 23, 2013

boat


जो डूबा वो पार उतरा और जो किनारे बैठा रहा वो डूब गया
वेसे भी तो डूबना ही है तो फिर क्योँ न तुझमें ही डूब जाऊं
         -   सीमा आनंदिता
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dharm

धर्म की एक ही  परिभाषा हो सकती है जिस माहौल में जिस वातावरण  में श्रद्धा सहज ही उत्पन्न होती हो  और संदेह पैदा होना ही मुश्किल हो , पर अभी तो हालत उल्टी है । संदेह सहज है श्रद्धा करीब करीब असंभव है । हम अपनों पर ही श्रद्धा नहीं करते ,मित्र -मित्र पर भरोसा नहीं करता शत्रु की तो बात ही छोडो ,सारे संबंध ही संदेह के हैं  ।  जहाँ हर जगह संदेह हैं व हर अनुभव से संदेह हो तो वहां कम से कम ऐसा एक संबंध तो हो  जहाँ सारे संदेह उतार कर फेंक सकें ।
                                                       सीमा आनंदिता

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Tuesday, October 22, 2013

canvas

कुछ दिन से यह एहसास हो रहा है
जैसे कि सब कुछ कैनवास पर चल रहा है
चलते फिरते लोग बनती बिगडती लकीरे हों
जो कुछ उभर रही हैं और कुछ छुप रही हैं
सब कुछ मिश्रित हो रहा है
कुछ नया बन रहा है
तो कुछ पुराना खो रहा है
फिर भी पहचाना पहचाना  सा लग रहा है
                                    सीमा आनंदिता

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Monday, October 21, 2013

karwa chauth ki badhai

आप सभी को करवा चौथ की हार्दिक बधाई । आज का दिन हर उम्र की स्त्री के लिए विशेष दिन है
उस प्रथम दिन की एक बिसरी बिसरी सी मधुर स्मृति आज हर स्त्री की आँखों में सजीव हो उठती है ।
तो दादी हों या नानी, मामी हों या मौसी,चाची हों या बुआ और दीदी हों या भाभी -आज सब दुल्हन सी सजेंगी ।
आज चाँद भी भोंचक्का सा रह जायेगा छतों पे इतनी खूबसूरती देख कर :--

चन्दा मेरे लिए थोड़ा  रुक जाना
मेरे पिया जो घर आ जाएँ
आकर सीने से लग जाएँ
तब बादल में कहीं छुप जाना
चन्दा मेरे लिए थोड़ा  रुक जाना


है इंतज़ार मुझे शाम से ही उनका
रूठे तो नहीं यही सोचे मोरा  मनवा
तू तो है मेरा हमजोली ,संग संग खेली आँख मिचौली
अब तू ही बुला के उन्हें लाना , चन्दा .........


आयेंगे देर से जो आज मेरे सैंयाँ ,
कह दूंगी उन से जो पकड़ेंगे वैयां
आगे हाथ मेरे तुम जोड़ो ,देर से आना बिलकुल छोडो
मेरी हाँ में ही तुम हाँ मिलाना ,  चन्दा ......


तू तो जाने है मैंने सारा जीवन अपना ,
आँखों में पाला है ये प्यारा प्यारा सपना
मेरी मांग भरे सिन्दूरी , उन से रहे न कोई दूरी
आज तुम  ही उन्हें ये बतलाना , चन्दा .......


आते ही खोलूँगी मैं बाँहों की किवरिया ,
कर लूंगी बंद उनमें अपना सांवरिया
चले दूर कहीं तब जाना , सारी रात इधर न आना
रुक जाना न करके बहाना , चन्दा.........


चन्दा मेरे लिए थोड़ा रुक जाना ...


                                                 --------आनन्द बिहारी


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karwa chauth

आप सभी को करवा चौथ की बधाई ।
वर्ष में एक ही त्यौहार ये ऐसा है जिसमें हर उम्र की स्त्री पूरा श्रृंगार करती है
और दुल्हन सा सजने का अपना शौक पूरा करती है । करना ही चाहिए क्यों कि
वो दिन भुलाया ही नहीं जा सकता जिस दिन पिया से मिलन हुआ ।
तो लीजिये श्रृंगार के सब साधन प्रस्तुत हैं :--

चाँद ने हमको दी सौगात पिया मिला जो तेरा साथ ,
यूँ ही  ये  त्यौहार मनाएं जनम जनम हम तेरे साथ ।

परिणय का वो दिन प्यारा , जब दुल्हन का था किया श्रृंगार
आज वही दिन याद करें ,जब मिले थे तुम से पहली बार ।

हर जनम यूँ ही हम साथ रहें , न छूटे कभी ये हाथ
हम तुम हों या तुम हम हो, बस रहे यूँ ही ये साथ ।

साथ तेरा पाकर हुई पूरी, वरना रहती यूँ ही अधूरी
तुझ से ऐसे मिल जाऊं कि मिट जाए जन्मों की दूरी ।

तेरे रंग में रंगी हूँ ऐसे, तुझ बिन जीवन लगता व्यर्थ
अर्थ दिया जिसने जीवन को, देती उस चन्दा  को अर्क ।

                                                    --सीमा आनंदिता

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peace

परमात्मा है महाशांति - वहां मौन ही प्रविष्ट कर सकता है शांति ही उस परम शांति को छू सकती है उस जगत में शोर की आवश्यकता नहीं है । चिल्लाने की आवश्यकता तो हमे इस जगत में पड़ती है क्योँ कि यहाँ पर सभी व्यस्त  हैं परमात्मा तो महा विश्राम में है । इस जगत में लोगों के इतने विचार चल रहें हैं कि जब तक न चिल्लाओं वे नहीं सुनते,जब कि  परमात्मा तो महा शून्य है जरा सी  भी भाव की तरंग उस तक पहुँच जाती है । शांति ही उसकी प्रार्थना है । 
                                   ----  सीमा आनंदिता

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Sunday, October 20, 2013

dream

अब तो है यही लक्ष्य
बस मैं मिलूं तुमसे हर बार
अपने बस की बात नहीं पर
उम्मीद साथ है मेरे यार।
 ख्वाब हो ये या हो ये हकीकत
नहीं इनमें कोई अंतर
ये सच भी सपने जैसा है
चलता यहाँ निरंतर ।
                -----       सीमा आनंदिता

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dharm

विश्वाश में एक सुरक्षा है हम बनी बनायीं मान्यताओ को मानते चले जातें है । अविश्वाश करने में खतरा है हम अकेले खड़े है हमें अपना रास्ता स्वयं खोजना है इसलिए भीड़ के साथ चलने  में सुविधा  है । सत्य की खोज तभी हो सकती है जब हम असुरक्षित अनुभव करतें हैं एक तरह से मृत्यु से  हो कर गुजरना पड़ता है ,जहाँ सब कुछ अज्ञात है ,मनुष्य सुरक्षित रहना चाहता है । एक धर्म को मानने वाले एक ही धर्म को पीढ़ी दर पीढ़ी मानते चले जाते हैं दूसरे धर्मों के बारे उन्हें कोई  जानकारी ही नहीं होती है । सब मूर्छित  से चलते चले जाते हैं । कोई भी धर्म जब नया होता है तब वो मौलिक  होता है।  सब उसी एक की ओर इशारा करतें हैं झगडे की कोई बात ही नहीं लेकिन जैसे जैसे और चीज़ें उसमे जुडती जातीं हैं उसकी मौलिकता नष्ट होती जाती हैं इसीलियें नए नए धर्म और शाश्त्रों की आवश्यकता होती है वरना  तो वेद ही पर्याप्त थे ।
                               सीमा आनंदिता

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Saturday, October 19, 2013

yashodhra


जीवन नहीं छलावा एक हक़ीकत है
यशोधरा से बुद्ध को मिली नसीहत है
सत्य अगर है सत्य तो वो हर क्षण में है
जीवन के हर पथ में हर कण कण में है ।

अब प्रश्न कहाँ जीवन के इस-उस पार का
घर उपवन नदिया सागर मंझधार का ?
वन में ही था सत्य तो वापस आता क्यों ?
प्यार यशोधरा का मुझे बुलाता क्यों ?

ढूंढ़ रहे गर सत्य तो भटक न जाना तुम
अगर कहीं हो दूर तो घर आ जाना तुम
यही ज्ञान पाकर तो स्वयं मैं लौटा हूँ
यशोधरा के आगे आज मैं छोटा हूँ ।

भूल हुई जो मैंने घर को त्यागा था
तुमको और राहुल को छोड़ के भागा था
यशोधरा ! मेरा तप बहुत अधूरा है
सत्य तो बस तेरी आँखों का पूरा है ।
---आनन्द बिहारी
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saty narayan ki katha

बोलो सत्य नारायण भगवान  की जय । अब तक न जाने कितनी बार यह कथा हम सब ने सुनी होगी ,पर क्या मुझे कोई ये बताएगा कि सत्यनारायण की कथा आखिर है  क्या ?   क्योंकि अब तक  जो भी  सुनी  वो कथा सुनने न सुनने, प्रसाद  ग्रहण करने और न करने व कथा  बीच में छोड़कर जाने और पूरी कथा सुन ने के परिणाम की कथा है अर्थात यह कथा की कथा है तो सत्यनारायण भगवान   की  मूल कथा क्या है जो कि इस   कथा में लीलावती और कलावती व अन्य  पात्र सुन रहे हैं ।
                                                                                                                     ---  सीमा आनंदिता 

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बोलो सत्य नारायण भगवान  की जय । अब तक न जाने कितनी बार यह कथा हम सब ने सुनी होगी ,पर क्या मुझे कोई ये बताएगा कि सत्यनारायण की कथा आखिर है  क्या ?   क्योंकि अब तक  जो भी  सुनी  वो कथा सुनने न सुनने, प्रसाद  ग्रहण करने और न करने व कथा  बीच में छोड़कर जाने और पूरी कथा सुन ने के परिणाम की कथा है अर्थात यह कथा की कथा है तो सत्यनारायण भगवान   की  मूल कथा क्या है जो कि इस   कथा में लीलावती और कलावती व अन्य  पात्र सुन रहे हैं ।
                                                                                                                     ---  सीमा आनंदिता 

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state of mind

मन
                                                                                                                                             ---      सीमा आनंदिता
सदा दूसरे में खोजता है सुख और  थोपता है दुःख । दूसरे  से चाहता है शांति और प्यार पर  मिलती है अशांति । जबकि हम दुखी और सुखी अपने ही कारण होते हैं यदि हम दुखी न होना चाहें  तो हमें  कौन दुखी कर सकता है । दुःख है मानसिक व कष्ट है शारीरिक जब हम भूखे प्यासे  या बीमार होते हैं तब शरीर को कष्ट अनुभव होता है, उस समय दुःख नहीं होता ।  इसीलिए  जब कभी हम अस्वस्थ होते हैं तब लगता है जल्दी से स्वस्थ हो जायें, उस समय समझ में आता है कि निरोगी काया से  बड़ा कोई सुख नहीं है ।
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Friday, October 18, 2013

shashtra

स्वयं के द्वारा किया गया अनुभव ही  स्वयं का शाश्त्र है  । जिसने शास्त्र लिखे वो उनके स्वयं के अनुभव होगें ,उनके अनुभव हमारे अनुभव नहीं हो सकतें,हाँ थोड़ी  सी सूचना जरुर  दे सकतें हैं हमारी स्वयं की  यात्रा  के लिए । शाश्त्रो में लिखा है कि आत्मा अमर हैं यह  सूचना हमें शास्त्र से मिलती है  परन्तु यह सूचना सत्य है कि असत्य जो उसको जानने का  प्रयत्न करतें हैं व लिखी लिखाई बात को सत्य मानकर नहीं बैठ जातें हैं,उन लोगो के लिए शाश्त्र सहारा है उनकी अपनी खोज के लिए ।  हमारे अनुभव के अनुसार हमारे शास्त्र होने चाहिएं न कि शाश्त्र के अनुसार हमारे अनुभव ।
                                            -   सीमा आनंदिता

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Thursday, October 17, 2013

mirror



हमारा चेहरा पहचान है, दूसरो के लिए वे हमें  हमारें  चेहरे  से पहचानतें हैं । हमें अपनी पहचान के लिए दर्पण देखने की आवश्यकता नहीं बल्कि अपने अंदर झाँकने की आवश्यकता है ।
                                                       -  सीमा आनंदिता



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Wednesday, October 16, 2013

ईद मुबारक दोस्तो, धार्मिक सौहार्द का प्रतीक ये त्यौहार आप सभी के लिए मंगलमय हो 
---Anand Bihari Shrivastava 


नींद भरी आँखों में सपनों की डोरी
बांध के ले जाएगी सुबह की गोरी

इस से पहले कि पूरब की देहरी से निकले पहली किरण
मैं आगे बढ़ के सुबह के दरवाजे पे तेरा नाम लिख दूँ
इक सलाम लिख दूँ

भंवरो जाओ न्योत आओ तुम सभी बाग़ की खिलती कलियों को
आके देखें वो खुलती पलकों में आँखों की इन हसीं बंद गलियों को
रात भर की थकी प्यार की भूखी प्यासी प्यासी पवन
मैं इन हसीं आँखों के मस्त भीगे किनारों पर एक जाम रख दूँ
तेरे नाम रख दूँ

ऐ बहारो, यूँ संवारो, तुम मेरी आँखों के सारे सपनो को
देख कर जिनको रश्क हो जाए गैरों को ही नहीं मेरे अपनों को
बन के दुल्हन मेरे मुस्कुराती सी आ जाओ जो तुम
तेरे रूप के बदले मैं तो आराम सारी दुनिया के नीलाम कर दूँ
सरे आम कर दूँ

--आनन्द बिहारी
 
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eid mubarak

ईद मुबारक हो ।  भेद भाव  को भूलकर सभी त्योहारों को उल्लास पूर्वक और सौहार्द पूर्वक मनाएं ।
 उत्सव है हर क्षण यहाँ नहीं जगह यहाँ मातम की
गर हर क्षण ही उत्सव चले तो मरने से कोई क्यूँ डरे
                                       - सीमा आनंदिता

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Tuesday, October 15, 2013

rango se judiyen


बच्चों को रंग बिरंगी वस्तुएं बहुत पसंद होती हैं, वे रंग बिरंगे पत्थर एकत्र करतें हैं पर जैसे जैसे बड़े होतें हैं वो उन्हें आकर्षित करना बंद कर देती  हैं ,वे दूसरी  बेरंग वस्तुओं में आनंद  खोजना शुरू कर देतें हैं । प्रकृति ने चारों तरफ इतने सारे रंग बिखेरें हुएं हैं  जो कि हमारे लिए ही हैं । जब हम फिर से उनकी तरफ  लौटतें  हैं तब जीवन में फिर से आनंद आ जाता है ।
                                     -   सीमाआनंदिता

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Monday, October 14, 2013

आनंदित रहने के लिए अपनी रूचि का कार्य करें|

sea side scenery


जिस कार्य को करने में रूचि हो और वही हमारा जीवकोपार्जन का साधन व जीवन निर्वाह के लिए पर्याप्त धन प्राप्त हो जाता हो,तब हम हर समय आनंदित रहते है । अधिक धन का अर्जन भी इसीलिए करते है, ताकि उस धन से आनंद प्राप्त कर सके, पहले तो धन अर्जन में समय लगता है फिर उससे आनंद प्राप्त करने के लिए समय चाहिए जो कि होता नहीं है । यदि हम अपनी रूचि का कार्य करें तो फिर हमें अलग से मनोरंजन के साधन खोजने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी । 
--सीमा आनंदिता
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