जो
व्यक्ति लोगो की आलोचना करतें हैं और जो लोग आलोचना पर ध्यान देतें
हैं कि उनके बारे में क्या कहा जा रहा है । दोनों की नजर एक दूसरे के ऊपर
टिकी है दोनों ही एक दूसरे को सहारा दे रहे हैं यदि प्रतिक्रिया बंद कर
दें तो क्रिया भी बंद हो जायेगी । आलोचक भी शांत हो जाता है दोनों का ही
भला होता है दोनों ही बहिर्मुखी हैं, धीरे धीरे दोनों की अंदर के ओर की
यात्रा शुरू हो जाती है । जब उन्हें अंदर का
आनंद ज्ञात होता है तब अपनी नासमझी पर उन्हें हंसी आती है । यदि प्रशंसा
पसंद है तो आलोचना भी स्वीकारनी पड़ेगी क्योकि दोनों ही एक सिक्के के दो
पहलू है । एक के साथ दूसरा अपने आप ही आएगा प्रशंसा और आलोचना दोनों तरफ
ध्यान देना बंद कर दे तभी सच्चे आनंद का अनुभव होता है ।
- सीमा आनंदिता
- सीमा आनंदिता
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