हमारे
संत महात्मा कहते हैं कि काम क्रोध मद लोभ ईर्ष्या छोड़ दो, अध्यात्मिक
उन्नति व आनंद पूर्ण जीवन जीने में ये बाधक है । यह उनकी करुणा है वे नहीं
चाहते कि हम उन विषादों को झेले जो कि उन्होंने झेले हैं । हमें लगता
है कि हमें बहुत ही नैतिकता और सदाचार का
उपदेश दिया जा रहा है । मैं तो कहती हूँ बिलकुल भी विश्वाश मत करो उनकी
बातो का क्या पता झूठ ही बोल रहे हो, हो सकता है इससे दूसरे का भला हो रहा
हो अपना नुकसान हो रहा हो ,बिलकुल मत छोडो बल्कि और जोर से पकड़ो शर्त यह है
कि इन भाव का पूरा आनंद उठाओ क्योंकि मजा आरहा है तभी तो नहीं छोड़ पा रहे
हैं इसलिए जब क्रोध आये ईर्ष्या जगे घृणा उत्पन्न हो तो आराम से बैठ जाओ
पूरा लुत्फ़ उठाओ फिर ये नहीं करना कि चलो टीवी देख लेते है या संगीत सुन
लेते है या किसी के साथ गप शप कर लेते है टालना बिलकुल नहीं है क्योंकि हम
और दूसरी जगह अपने आप को उलझा लेते है तो पूरा आनंद नहीं उठा पाते है जो
भी काम करो उसे पूरी पूर्णता के साथ करो तब हमें पता चलेगा कि जब क्रोध
आता है तब कैसे अंदर सब कुछ जलता है आग तो ऊपर ऊपर ही जलाती है क्रोध तो
अंदर तक जला देता है ईर्ष्या ऐसा जहर भरती है ऐसा जहर तो सांप के काटने
से भी नहीं फैलता घृणा का भाव जगे तब अपना चेहरा शीशे में देख लेना अपने से
ज्यादा भीभत्स कोई दूसरा नहीं लगेगा फिर दोबारा घृणा नहीं कर पाओगे और जब
प्यार का भाव जगे तब भी अपने आप को शीशे में देख लेना तब अपने से ज्यादा
सुन्दर कोई नहीं लगेगा । जब हम किसी काम को पूर्णता से कर लेते हैं तो
उससे छूट जाते हैं यदि हम इन भाव को पूरी सम्रगता से जी ले तो दोबारा काम
क्रोध घृणा ईर्ष्या नहीं कर पायेगें तब फिर जो बचेगा वो केवल करुणा व
प्यार होगा फिर तो अमृत ही अमृत बरसेगा और तब तो सिर्फ बाँटना ही है।अब
हमें अपने अनुभव से पता होगा किसी और के अनुभव से नहीं कि आग जलाती है,
जान बूझकर तो आग में हाथ नहीं डालेगें इतनी बुद्धि तो हममें है। यही है
साक्षी भाव ।
- सीमा आनंदिता
- सीमा आनंदिता
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