स्त्री
पुरुष एक दूसरे के पूरक भी हैं और अपने आप में परिपूर्ण भी । परन्तु यहाँ
बात हो रही है स्त्रीत्व गुण और पुरुषत्व गुण की , बायो लॉजिकल शरीर की
नहीं स्त्रीत्व के गुण है प्रेम मय व भाव पूर्ण हृदय और पुरुषत्व के गुण
है बुद्धि और तर्क । किसी पुरुष में भी स्त्री के गुण हो सकते है वो प्रेम
मय व भाव पूर्ण हो सकता है व किसी स्त्री में पुरुष गुण हो सकते है वो बहुत
बुद्धि शाली व तर्क निष्ठ हो सकती है
,शरीर से इसका कोई लेना देना नहीं है जो भी व्यक्ति ध्यानी है उसमें
स्त्रीत्व के गुण धीरे धीरे आजाते है क्योंकि स्त्रीत्व गुण से आती है
तरलता । प्रकृति ने भी स्त्री को चुना सबसे महत्वपूर्ण सृजन के लिए क्योकि
वो कोमल है तरल है स्त्री इतना कष्ट सहकर एक नए जीवन को संसार में लाती है
उसका क्या स्वार्थ इतना कष्ट सहने का पर वह बहुत आनंदित होती है शिशु के
रूप में एक जीता जागता नया जीवन देकर ।पुरुष की साझेदारी तो बहुत कम होती
है । तरलता ही जीवन है। कोमल और तरल व्यक्ति ही सृजन कर सकता है एक
पुरुष भी यदि सृजनात्मक कार्य करता है तो वो भी बहुत कोमल और तरल हो जाता
है ,बुद्धि और तर्क तो लाती है कठोरता जिससे सिर्फ अहम् ही बढ़ता है । एक
स्त्री ऐसा ही पुरुष पसंद करती है जो नाच सके गा सके कविता लिख सके क्योंकि
ऐसा पुरुष ज्यादा तरल प्रेम मय और भाव पूर्ण होगा क्योंकि तरलता से ही
तरलता मिल सकती है कठोरता से तरलता नहीं । तरलता में ही ऊर्जा बहती है
कठोरता तो ऊर्जा के प्रवाह के लिए बाधक है। जीवन जीने के लिए परमात्मा
सबको सहज बुद्धि देता है जिसके द्वारा हम हमेशा आनंद पूर्ण रह सकते हैं
बाकी बाकी ज्ञान और तर्क तो अहंकार बढ़ाते है । भाव पूर्ण होने के कारण
स्त्री हृदय से सोचती है पुरुष दिमाग से क्योंकि स्त्री प्रकृति के ज्यादा
समीप होती है इसलिए उसके निर्णय अक्सर सही होते हैं वो भ्रमित नहीं रहती है
। पुरुष भ्रमित रहते हैं क्योंकि बुद्धि तो उन्ही की है । स्त्रियां
टाइमलेसनेस में रहती है वे घंटों गप शप कर सकती हैं श्रृंगार कर सकती है
उनको समय का पता नहीं चलता । स्त्री हमेशा इन्तजार करती है कि उसका प्रेमी
उसे प्रेम का प्रस्ताव दे इसके लिए वे कितनी भी प्रतीक्षा कर सकती हैं यह
उसका अहम् नहीं बल्कि धैर्य है । परमात्मा से मिलने के लिए इन्ही गुणो कि
आवश्यकता होती है । यह मैं फिर कह रही हूँ कि जरुरी नहीं कि हर स्त्री जो
स्त्री शरीर में है वह ऐसी ही हो व हर पुरुष में अहम् हो परन्तु ध्यान
करने से अपने आप यह गुण आने लगते है क्योंकि सृष्टि स्त्रीत्व गुण पर ही
निर्भर है ।
- सीमा आनंदिता
- सीमा आनंदिता
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