Monday, November 18, 2013

ek onkar satnaam



"एक ओंकार सत नाम, सत श्री अकाल " गुरु नानक के इन वचनो में सारा आध्यात्म समाया हुआ है । जब हम बहुत गहरे विश्राम में होते है तब हमारे प्राण सुषुम्ना नाड़ी में बहते हैं, उस समय यह ओंकार ध्वनि सुनी जा सकती है । परन्तु हम गहरी नींद में होने के कारण यह ध्वनि नहीं सुन पाते हैं । जो लोग गहरे ध्यान में उतरते हैं वे इस ध्वनि को स्पष्ट सुन पाते है- यही है समाधि की स्थिति। इस समय सांस की गति बहुत ही धीमी हो जाती है । अब प्रश्न यह है कि यह ध्वनि क्यों सुननी चाहिए ? इसका क्या प्रयोजन है ?क्या इससे स्वर्ग कि प्राप्ति होगी या कोई मोक्ष होगा ? स्वर्ग और मोक्ष का तो पता नहीं परन्तु हम इस धरती पर रहते हुए जरुर आनंदित हो जायेगें और यही सच्चा रिलैक्सेशन है । वास्तव में रिलैक्सेशन वही है जिसका हमे पता चले यानि हम होश में हो वरना जब नींद आती है हम सो जाते है ,जब नींद पूरी हो जाती हैं हम जग जाते हैं, सोने और जागने के बीच क्या हुआ हमे कुछ नहीं पता होता । इसका पता क्यों होना चाहिए? क्योंकि यही है सम्पूर्ण विश्राम और इसीमे आनंद है । हम हमेशा बाह्य माध्यम में आनंद खोजते है क्योकि हम अकेले अपने साथ नहीं रह सकते । अकेले बैठते ही हजारो विचार हमारे दिमाग में चलने लगते है जो हमे थका देते हैं । जागे होते है तब विचार चलते है, सोते है तब सपने ,जिसके कारण हम गहरी नींद से भी वंचित रह जाते है । हम रिलैक्स तभी हो पाते हैं जब निर्विचार हों ,तब इसके लिए हम दूसरे माध्यमो में अपने को व्यस्त कर लेते है और थक कर सो जाते हैं -यह है बेहोशी का रिलैक्सेशन । हम ज्यादा धन भी इसीलिए अर्जित करते है कि इससे आनंद प्राप्त कर सकें ,बचत भी इसीलिए करते है कि बाद में आनंद करेगे । ये बात अलग है कि ऐसा कभी हो नहीं पाता । जो इस ध्वनि को सुनता है वह सम्पूर्ण विश्राम की अवस्था में होता है व हर क्षण आनंद में रहता है । उसकी आवश्यकताएँ बहुत कम रह जाती है । जितनी शरीर की जरुरत पूरी करने के लिए आवश्यक है बस उतनी ही रह जाती है और शरीर की जरूरते तो बहुत कम हैं । ऐसा व्यक्ति समयातीत हो जाता है ,वह हर क्षण वर्त्तमान में रहता है । वर्त्तमान शाश्वत है, जो शाश्वत है वही सत्य है ,जो सत्य है वही शिव है और जो शिव है वही सुन्दर है । भूत और भविष्य अब ऐसे व्यक्ति के लिए समाप्त हो गए -यही है सत श्री अकाल अर्थात समय से परे यानि टाइमलेसनेस यानि समयातीत यानि अकाल जहाँ अहंकार शून्य हो जाता है। जिसको जितना ज्यादा समय का बोध होता है उतना ही ज्यादा उसमें ईगो होता है । अगर संत सीधे कहें कि विश्राम करो तो हमे लगेगा कि यह कौन सी नयी बात है सो संत इसके परिणाम की बात कहते है कि ओंकार की ध्वनि सुनो क्योंकि हमें हर समय कुछ न कुछ करने की आदत है सरल सीधी बात हमारी समझ में नहीं आती है ।
- सीमा अनंदिता

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