यूँही
एक दिन विचार आया कि बाल्मिक ने रामायण पहले ही लिख ली थी परन्तु रामायण
की घटना तो बाद में घटी इसका मतलब यह हुआ कि रामायण के सारे पात्र बाल्मिक
की रामायण का अभिनय कर रहे थे। हम ऐसा ही अपने जीवन के लिए सोच सकते है कि
हमारी कहानी भी पहले ही लिखी जा चुकी हम सिर्फ अभिनय कर रहे हैं तो जीवन
बहुत आसान व आनंदपूर्ण हो जायेगा । पर आश्चर्य तब हुआ जब मैंने देखा कि
बिलकुल यही बात ओशो ने भी अपनी किसी किताब
में कहीं पर लिखी हुई थी तब मुझे लगा कि मैं भी इनके जैसा ही सोचती हूँ
और सही दिशा में बढ़ रही हूँ । अब कोई आश्चर्य नहीं क्योंकि जो भी निसर्ग
से जुड़ता है वो एक जैसा ही सोचता है,क्योंकि ज्ञान का स्रोत्र तो एक ही
है। ओशो लाओत्जे और बुद्ध जैसे लोग कसौटी अपने आप को कसने के लिए कि हमारी
प्रगति सही दिशा में हो रही या नहीं ।
- सीमा आनंदित
- सीमा आनंदित
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