संसार
में हर चीज का रिपीटीशन है| हर चीज जहाँ से शरू होती है फिर वहीं पहुँच
जाती है संसार की गति वर्तुल हैं इसे ही संसार चक्र कहते हैं सुबह होती
है दिन होता रात होती है फिर सुबह हो जाती है । जन्म होता है बच्चे होते
जवान होते बूढ़े होते मृत्यु हो जाती फिर जन्म हो जाता । गर्मी बरसात सर्दी
फिर गर्मी आ जाती ,पतझर होता वसन्त आ जाता फिर पतझर हो जाता । सुख होता
फिर दुःख आ जाता। यही संसार की प्रकृति अर्थात
स्वभाव हैं । इसी चक्र में हम जन्मो जन्मो कोल्हू के बैल की तरह घूमते
रहते है । यहाँ प्रकृति ही सब कुछ करती है हम बस निभाते जाते हैं मशीन की
तरह हमारी कोई मर्जी नहीं होती । जो ठहर जाता है वह इस चक्र से बाहर निकल
जाता है फिर वह प्रकृति का हिस्सा नहीं रहता अब उसकी स्वयं कि मर्जी है ।
अब वह परमात्मा हुआ अपनी मर्जी का मालिक अब वह आवागमन से मुक्त हुआ उसके
लिए अब प्रकृति सो गयी और परमात्मा जग गया । मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जिसे
अपने होने का एहसास होता है यदि वो जाग्रत है, वरना तो प्रकृति के सारे
जीव मूर्छित अवस्था में होते हैं उन्हें अपने होने का एहसास नहीं होता है
वे इसी चक्र में घूमते रहते हैं । जो मनुष्य जाग जाता है फिर वह रुक जाता
है अब वह इस चक्र का हिस्सा नहीं रहता अब वह इस चक्र के बाहर हुआ व समय
चक्र से भी बाहर हुआ अब उसकी मर्जी उसे संसार में आना हो आये ना आना हो ना
आए जहाँ जन्म लेना हो ले अब वह स्वयं अपने लिए चुनाव करता है प्रकृति नहीं
करती है अब वह परमात्मा है वह हर क्षण नया है वहाँ रिपीटीशन नहीं है जो
अपनी मर्जी का मालिक वही परमात्मा हुआ । अभी तो हम प्रकृति के हाथ का
खिलौना है, पता नहीं कब सुखी हो जाएँ पता नहीं कब दुखी हो जाएँ । हमें इस
चक्र से छुड़ाने कोई नहीं आएगा हमें स्वयं ही प्रयास करना होगा ।अब क्या
प्रयास करें कैसे करें इसके लिए कभी कभी प्रतिदिन के रूटीन से अपने को
कुछ समय के लिए अवकाश देना चाहिए । कहीं एकांत वास में जाएँ घडी को बंद कर
दें जब भूख लगे तब खाएं जब प्यास लगे तब पानी पियें जब नींद आए तब सोएं
शरीर की सुनें दिमाग की नहीं । इस तरह के अभ्यास से समय चक्र से बाहर
निकलने लगते हैं व संसार में रहते हुए भी संसार चक्र से धीरे धीरे बाहर
होने लगते हैं ।
- सीमा आनंदित्ता
—- सीमा आनंदित्ता
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