समस्त भाव में सबसे महत्वपूर्ण भाव है प्रेम का, होना भी चाहिए सभी एक ही जीवन स्रोत से आयें हैं सभी की एक ही खोज है । प्रेम ही वो झरना है जिसकी धारा हमारे हृदय से बह है और हमारी जड़ो को सींच रही वरना हम दिमाग तक ही सीमित रह जाते । दिमाग है शोषक और ह्रदय है पोषक ।जितना व्यक्ति हृदय से जुड़ा रहता है उतना ही संवेदनशील होता है । संवेदनाओ से ही जीवन में रस है, संवेदनहीन जीवन तो नीरस है । प्रेम पाने से ज्यादा महत्वपूर्ण है प्रेम करना क्योंकि प्रेम करने वाला व्यक्ति हृदय चक पर स्वतः ही स्थित हो जाता है उसे ध्यान करने कि आवश्यकता नहीं ।ध्यान और प्रेम कि घटना एक साथ ही घटती है । जिसने प्रेम किया वो ध्यान को उपलब्ध हो गया और जिसने ध्यान किया वो प्रेम को उपलब्ध हो गया । परन्तु हम प्रेम की भीख माँगते है जब कि हम सम्राट है ।
=सीमा आनंदिता
=सीमा आनंदिता