Tuesday, October 22, 2013

canvas

कुछ दिन से यह एहसास हो रहा है
जैसे कि सब कुछ कैनवास पर चल रहा है
चलते फिरते लोग बनती बिगडती लकीरे हों
जो कुछ उभर रही हैं और कुछ छुप रही हैं
सब कुछ मिश्रित हो रहा है
कुछ नया बन रहा है
तो कुछ पुराना खो रहा है
फिर भी पहचाना पहचाना  सा लग रहा है
                                    सीमा आनंदिता

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