Wednesday, October 23, 2013

dharm

धर्म की एक ही  परिभाषा हो सकती है जिस माहौल में जिस वातावरण  में श्रद्धा सहज ही उत्पन्न होती हो  और संदेह पैदा होना ही मुश्किल हो , पर अभी तो हालत उल्टी है । संदेह सहज है श्रद्धा करीब करीब असंभव है । हम अपनों पर ही श्रद्धा नहीं करते ,मित्र -मित्र पर भरोसा नहीं करता शत्रु की तो बात ही छोडो ,सारे संबंध ही संदेह के हैं  ।  जहाँ हर जगह संदेह हैं व हर अनुभव से संदेह हो तो वहां कम से कम ऐसा एक संबंध तो हो  जहाँ सारे संदेह उतार कर फेंक सकें ।
                                                       सीमा आनंदिता

No comments:

Post a Comment