धर्म की एक ही परिभाषा हो सकती है जिस माहौल में जिस वातावरण में श्रद्धा सहज ही उत्पन्न होती हो और संदेह पैदा होना ही मुश्किल हो , पर अभी तो हालत उल्टी है । संदेह सहज है श्रद्धा करीब करीब असंभव है । हम अपनों पर ही श्रद्धा नहीं करते ,मित्र -मित्र पर भरोसा नहीं करता शत्रु की तो बात ही छोडो ,सारे संबंध ही संदेह के हैं । जहाँ हर जगह संदेह हैं व हर अनुभव से संदेह हो तो वहां कम से कम ऐसा एक संबंध तो हो जहाँ सारे संदेह उतार कर फेंक सकें ।
सीमा आनंदिता
सीमा आनंदिता
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