मन
--- सीमा आनंदिता
सदा दूसरे में खोजता है सुख और थोपता है दुःख । दूसरे से चाहता है शांति और प्यार पर मिलती है अशांति । जबकि हम दुखी और सुखी अपने ही कारण होते हैं यदि हम दुखी न होना चाहें तो हमें कौन दुखी कर सकता है । दुःख है मानसिक व कष्ट है शारीरिक जब हम भूखे प्यासे या बीमार होते हैं तब शरीर को कष्ट अनुभव होता है, उस समय दुःख नहीं होता । इसीलिए जब कभी हम अस्वस्थ होते हैं तब लगता है जल्दी से स्वस्थ हो जायें, उस समय समझ में आता है कि निरोगी काया से बड़ा कोई सुख नहीं है ।
--- सीमा आनंदिता
सदा दूसरे में खोजता है सुख और थोपता है दुःख । दूसरे से चाहता है शांति और प्यार पर मिलती है अशांति । जबकि हम दुखी और सुखी अपने ही कारण होते हैं यदि हम दुखी न होना चाहें तो हमें कौन दुखी कर सकता है । दुःख है मानसिक व कष्ट है शारीरिक जब हम भूखे प्यासे या बीमार होते हैं तब शरीर को कष्ट अनुभव होता है, उस समय दुःख नहीं होता । इसीलिए जब कभी हम अस्वस्थ होते हैं तब लगता है जल्दी से स्वस्थ हो जायें, उस समय समझ में आता है कि निरोगी काया से बड़ा कोई सुख नहीं है ।
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