बांहें फैलाती, मुझको उठाती, सीने से अपने लगाती - वो माँ थी
लोरी सुनाती, सर थपथपाती, मुझे नींद में चूम जाती - वो माँ थी ।
बचपन का मेरे वोही आसमां थी , आँचल था उस का चमन सा
मैं उसकी बगिया का फूल प्यारा ,चन्दा था उस के गगन का
हर शाम छत से, चन्दा दिखाती, माथे पे टीका लगाती- वो माँ थी
लोरी सुनाती, सर थपथपाती, मुझे नींद में चूम जाती - वो माँ थी ।
कभी जो बनाती थी माँ खीर घर में, बड़े प्यार से बाँटती थी
छुट पुट शरारत जो करता कभी तो, मुझे आँखों से डांटती थी
इशारे से मुझ रूठे को फिर मनाती, इक प्याला ज्यादा खिलाती -वो माँ थी
कभी रूठ कर अपना गुस्सा दिखाती, मेरे हंसने से फिर मान जाती -वो माँ थी
--आनन्द बिहारी
लोरी सुनाती, सर थपथपाती, मुझे नींद में चूम जाती - वो माँ थी ।
बचपन का मेरे वोही आसमां थी , आँचल था उस का चमन सा
मैं उसकी बगिया का फूल प्यारा ,चन्दा था उस के गगन का
हर शाम छत से, चन्दा दिखाती, माथे पे टीका लगाती- वो माँ थी
लोरी सुनाती, सर थपथपाती, मुझे नींद में चूम जाती - वो माँ थी ।
कभी जो बनाती थी माँ खीर घर में, बड़े प्यार से बाँटती थी
छुट पुट शरारत जो करता कभी तो, मुझे आँखों से डांटती थी
इशारे से मुझ रूठे को फिर मनाती, इक प्याला ज्यादा खिलाती -वो माँ थी
कभी रूठ कर अपना गुस्सा दिखाती, मेरे हंसने से फिर मान जाती -वो माँ थी
--आनन्द बिहारी
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