Monday, October 28, 2013

yog

अष्टांग योग, सहज योग प्रेम योग या भक्ति योग ये सारे ही अलग अलग मार्ग है उस परम तत्व को पाने के लिए पर सब एक दूसरे के पूरक भी हैं । एक घटता है जब, तब दूसरा अपने आप ही घट जाता है अष्टांग योग में हम शरीर को बाह्य क्रिया से शुद्ध करते हैं | शरीर शुद्ध तो विचार भी शुद्ध हो जाते हैं | सहज योग में हम बुद्धि के द्वारा विचार को शुद्ध करते हैं ,विचार शुद्ध तो शरीर शुद्ध हो जाता है व सारी उर्जा घनीभूत होकर सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश करती है | प्रेम योग या भक्ति योग इसमें हम किसी से इतना प्यार करने लगें कि हमारी सारी और उर्जा एकीकृत होकर ऊर्ध्वगामी हो जाए । हम उसी ऑर खिंचते हैं जो हमसे ज्यादा उर्जावान है धीरे धीरे उर्जा का स्तर एक होने लगता हैं तब दो नहीं एक हो जाते हैं तब द्वैत नहीं रह जाता अद्वैत होता हैं | जहाँ प्रेम है वहां ध्यान की घटना अपने आप ही घट जाती है जहाँ ध्यान है वहां प्रेम घट जाता है। इस प्रकार सब एक दूसरे के पूरक हैं । सहज योग नाम ही है सहज तो सरल तो होगा ही पर जब उम्र ज्यादा हो जाती है तब कोई सहज योग से साधना करता है तो थोडा मुश्किल होता है क्योकि उम्र बदने के साथ शरीर में कार्बन की ज्यादा मात्रा एकत्र हो जाती है जिस कारण शरीर का लचीलापन कम हो जाता है तब उर्जा प्रवाह ऊपर की ओर होना कठिन हो जाता है ,ऐसे में अष्टांग योग का सहारा लेना चाहिए जिस में शरीर शुद्ध होकर लचीला हो जाता है और उर्जा सहज ही ऊर्ध्वगामी होने लगती है और हम धीरे धीरे निर्विचार होकर उस परमतत्व के साथ एकीकृत होने लगते हैं ।

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