परमात्मा के यहाँ से तो हम सभी बिना लेबल के आतें है संसार में आकर धर्म जाति देश भाषा प्रान्त के लेबल लग जातें हैं। हम इंसान हैं यह लेबल भी, हमारा ही हमें दिया हुआ है ।परमात्मा के यहाँ से तो हम चेतना के अनुसार सृष्टि के प्राणियों से भिन्न हैं। हम में सृष्टि के और प्राणियों से ज्यादा चेतना है । पशु पक्षी को तो पता भी नहीं होता कि वे पशु पक्षी हैं । हमें सब लेबल याद रहतें हैं बस वही भूल जातें हैं जो हमें परमात्मा ने दिया है।उसने हमे चेतना दी है, हमें अपने आप को पहचानने की । हम जिंदगी भर सारे लेबल ढोते रहतें हैं जोकि मरते समय यहीं सब भस्म हो जातें हैं। परमात्मा ने हमे होश दिया है बस हम उस होश को सतत बनाए रहें। उसने हमें चुनाव कि क्षमता दी है,चाहे तो हम ऊर्ध्वगामी हो जाएं व चाहे तो पतन की और चले जाएं । ये क्षमता सृष्टि के किसी और प्राणी के पास नहीं है । पर हम उस क्षमता का गलत उपयोग करते हैं व खंड खंड होकर उस उर्ज़ा को नष्ट करतें हैं जो कि हमें अखंड रहतें हुए ऊर्ध्वगामी कर सकती थी जिससे हम देवता बन सकतें थे । देवता तो छोड़ो इंसान ही बनें रहें तो बहुत बड़ी बात होगी ।ये लेबल हमारे ऊर्ध्वगमन गमन में सहायक न होकर बाधक हैं । इनको उतार फेंकनें में ही समझदारी है ।
- सीमा अनादिता
- सीमा अनादिता
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