Monday, November 18, 2013

लक्ष्य तो था कि तुमको पा लूँ मैं
पर पाया तुझको
तो फिर तुझसे मैं मुक्त हुई
फिर मैं लक्ष्य विहीन
नहीं होना है मुक्त मुझे
मैं तो हूँ तुझसे बंध कर खुश
अलग अलग है अस्तित्व हमारा
अलग अलग पहचान हमारी
तुम तुम हो मैं मैं हूँ
नहीं मैं और तुम एक
तेरे पास रहूँ मैं
पर तुझसे ही मुक्त रहूँ
यही है बस प्यार हमारा
होकर एक न होगा गुजारा
सीमा आनंदिता


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sea


हम बूंदें है उस महासागर की, हर बूंद को पता होना चाहिएं उसका स्वयं का अस्तित्व। बूंद सागर में मिलकर खो नहीं जाती हैं, एक एक बूंद के अस्तित्व से महाअस्तित्व बनता है जिस बूंद को नहीं पता,वो बस सो रही है जब जागेगी तब उसे उसका अस्तित्व वापस मिल जायेगा । जो बूंदें जागी है उनके पास सो रहीं बूंदों का अस्तित्व सुरक्षित है ,जिस दिन सब जागेगी उस दिन सब अलग अलग होकर भी एक महाअस्तित्व होगीं । ------------- सीमा आनंदिता
— 
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bliss



जो व्यक्ति लोगो की आलोचना करतें हैं और जो लोग आलोचना पर ध्यान देतें हैं कि उनके बारे में क्या कहा जा रहा है । दोनों की नजर एक दूसरे के ऊपर टिकी है दोनों ही एक दूसरे को सहारा दे रहे हैं यदि प्रतिक्रिया बंद कर दें तो क्रिया भी बंद हो जायेगी । आलोचक भी शांत हो जाता है दोनों का ही भला होता है दोनों ही बहिर्मुखी हैं, धीरे धीरे दोनों की अंदर के ओर की यात्रा शुरू हो जाती है । जब उन्हें अंदर का आनंद ज्ञात होता है तब अपनी नासमझी पर उन्हें हंसी आती है । यदि प्रशंसा पसंद है तो आलोचना भी स्वीकारनी पड़ेगी क्योकि दोनों ही एक सिक्के के दो पहलू है । एक के साथ दूसरा अपने आप ही आएगा प्रशंसा और आलोचना दोनों तरफ ध्यान देना बंद कर दे तभी सच्चे आनंद का अनुभव होता है ।
- सीमा आनंदिता
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consciousness



जब कुछ लोग चेतना के स्तर पर ऊपर उठते हैं तब उसी समय कुछ लोग चेतना के स्तर से नीचे गिरते हैं क्योकि संसार में आक्सीजन की मात्रा सीमित हैं ,जो व्यक्ति ऊपर उठ रहा है वो ज्यादा आक्सीजन ग्रहण कर रहा है और जो नीचे गिर रहा है वो ज्यादा कार्बन ग्रहण कर रहा है । अधिकांश लोग तो मूर्छित अवस्था में जी रहे हैं वे बहुत कम आक्सीजन ग्रहण कर रहें हैं इसलिए इस युग में जो भी व्यक्ति जरा सा भी प्रयत्न करता है ऊपर उठने का तो बहुत ही शीघ्र उसकी उन्नति होती है । जागरण के लिए आक्सीजन चाहिए और सोने के लिए कार्बन । एक स्थिति ऐसी भी आती हैं जब पूरा शरीर डीटॉक्सीफाई हो जाता है तब सांस बहुत धीमी हो जाती है यही समाधि की अवस्था है यही पूर्ण जागरण भी है तब बहुत ही कम आक्सीजन की जरूरत होती है बिलकुल न के बराबर |
सीमा आनंदिता
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alone


जब संसार से वैराग्य उत्पन्न होता है तब लोग एकांत में चले जाते हैं । उन्हें वहाँ जो आनंद प्राप्त होता है ,वे उसे संसार में बाँटने फिर से भीड़ में आ जाते हैं उनकी करुणा उन्हें संसार में फिर से खींच लाती है ताकि वे बाकी लोगो को भी उसकी अनुभूति करा सकें ।
सीमा आनंदिता
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religion


धर्म का अर्थ हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई नहीं हैं ये तो मार्ग है उस सत्य तक पहुँचने का । धर्म का अर्थ है स्वभाव जैसे अग्नि का स्वभाव है जलना फूल का स्वभाव है सुगंध वैसे ही मनुष्य का स्वभाव है शांत और निर्विचार। ये सभी मार्ग उसको उसके स्वभाव तक पहुँचाने के लिए सहायक हैं । वस्तुतः तो हमें किसी मार्ग की आवश्यकता नहीं है हम वहीँ खड़े हैं जहाँ हमे होना चाहिए पर शायद हम भूल गए हैं इसलिए गोल गोल घूमकर वहीँ आ जाते हैं अपने घर । जैसे कस्तूरी कुंडल बसे ।
सीमाआनंदिता
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lover

ध्यानी और प्रेमी व्यक्ति कि चाल ढाल उठने बैठने का सलीका बोलने चालने का ढंग बहुत ही सौम्य और शालीन हो जाता है यही है सभ्य व्यक्ति ,जो कि अच्छा लगता है । हम इनकी नक़ल करते हैं । हम यह विचार नहीं करते कि यह सलीका इनमें कैसा आया । हम तो है असहज अंदर से खौल रहे ऊपर से लगा लिया ढक्कन यह है ऊपर से लादा हुआ सभ्य आदमी का चोगा ।हम हैं तो असहज नक़ल करते सहज की इस कारण हमारी ऊर्जा बाहर नहीं निकल पाती जिसके कारण हम तनावग्रस्त रहते हैं ।
- सीमा आनंदिता
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happy family


ध्यान सबके के लिए आवशयक है परन्तु एक स्त्री के लिए अति आवश्यक है क्योंकि वो परिवार का केन्द्र है । वो अपनी ऊर्जा से सारे परिवार को बांध कर रखती है जैसे सूर्य की ऊर्जा के कारण ही बाकी ग्रह उसकी तरफ खिंचे रहते हैं । उसको अतिरिकत ऊर्जा की आवश्यकता है इस ऊर्जा से ही घर का वातावरण सुख, शांतिपूर्ण बना रहता है,जिसके कारण सारे परिवार की उन्नति भलीप्रकार होती है। परिवार को बांधने के लिए शब्दो की आवश्यकता नहीं है जरुरत है स्त्री का भावपूर्ण होना । एक सफल वैवाहिक जीवन के लिए जहाँ पत्नी अपने पति के साथ बहुत समय व्यतीत करना चाहती है अगर उसका पति ऐसा नहीं कर रहा है तो इसमें कहीं स्त्री की ही कमी है । बायोलॉजिकल उम्र कुछ भी हो वास्तविक उम्र तो वही है जो आप महसूस करते हो । कोई व्यक्ति 4 0 का भी होकर 2 0 साल के व्यक्ति की तरह लग सकता है क्योंकि उसकी ऊर्जा का स्तर 2 0 साल के व्यक्ति की तरह है और इसका विपरीत भी सम्भव है । ऊर्जा ही सुंदरता का कारक है उसको कृत्रिम प्रसाधनों की आवश्यकता नहीं ।
- सीमा आनंदिता
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male female



स्त्री पुरुष एक दूसरे के पूरक भी हैं और अपने आप में परिपूर्ण भी । परन्तु यहाँ बात हो रही है स्त्रीत्व गुण और पुरुषत्व गुण की , बायो लॉजिकल शरीर की नहीं स्त्रीत्व के गुण है प्रेम मय व भाव पूर्ण हृदय और पुरुषत्व के गुण है बुद्धि और तर्क । किसी पुरुष में भी स्त्री के गुण हो सकते है वो प्रेम मय व भाव पूर्ण हो सकता है व किसी स्त्री में पुरुष गुण हो सकते है वो बहुत बुद्धि शाली व तर्क निष्ठ हो सकती है ,शरीर से इसका कोई लेना देना नहीं है जो भी व्यक्ति ध्यानी है उसमें स्त्रीत्व के गुण धीरे धीरे आजाते है क्योंकि स्त्रीत्व गुण से आती है तरलता । प्रकृति ने भी स्त्री को चुना सबसे महत्वपूर्ण सृजन के लिए क्योकि वो कोमल है तरल है स्त्री इतना कष्ट सहकर एक नए जीवन को संसार में लाती है उसका क्या स्वार्थ इतना कष्ट सहने का पर वह बहुत आनंदित होती है शिशु के रूप में एक जीता जागता नया जीवन देकर ।पुरुष की साझेदारी तो बहुत कम होती है । तरलता ही जीवन है। कोमल और तरल व्यक्ति ही सृजन कर सकता है एक पुरुष भी यदि सृजनात्मक कार्य करता है तो वो भी बहुत कोमल और तरल हो जाता है ,बुद्धि और तर्क तो लाती है कठोरता जिससे सिर्फ अहम् ही बढ़ता है । एक स्त्री ऐसा ही पुरुष पसंद करती है जो नाच सके गा सके कविता लिख सके क्योंकि ऐसा पुरुष ज्यादा तरल प्रेम मय और भाव पूर्ण होगा क्योंकि तरलता से ही तरलता मिल सकती है कठोरता से तरलता नहीं । तरलता में ही ऊर्जा बहती है कठोरता तो ऊर्जा के प्रवाह के लिए बाधक है। जीवन जीने के लिए परमात्मा सबको सहज बुद्धि देता है जिसके द्वारा हम हमेशा आनंद पूर्ण रह सकते हैं बाकी बाकी ज्ञान और तर्क तो अहंकार बढ़ाते है । भाव पूर्ण होने के कारण स्त्री हृदय से सोचती है पुरुष दिमाग से क्योंकि स्त्री प्रकृति के ज्यादा समीप होती है इसलिए उसके निर्णय अक्सर सही होते हैं वो भ्रमित नहीं रहती है । पुरुष भ्रमित रहते हैं क्योंकि बुद्धि तो उन्ही की है । स्त्रियां टाइमलेसनेस में रहती है वे घंटों गप शप कर सकती हैं श्रृंगार कर सकती है उनको समय का पता नहीं चलता । स्त्री हमेशा इन्तजार करती है कि उसका प्रेमी उसे प्रेम का प्रस्ताव दे इसके लिए वे कितनी भी प्रतीक्षा कर सकती हैं यह उसका अहम् नहीं बल्कि धैर्य है । परमात्मा से मिलने के लिए इन्ही गुणो कि आवश्यकता होती है । यह मैं फिर कह रही हूँ कि जरुरी नहीं कि हर स्त्री जो स्त्री शरीर में है वह ऐसी ही हो व हर पुरुष में अहम् हो परन्तु ध्यान करने से अपने आप यह गुण आने लगते है क्योंकि सृष्टि स्त्रीत्व गुण पर ही निर्भर है ।
- सीमा आनंदिता

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ramayan



यूँही एक दिन विचार आया कि बाल्मिक ने रामायण पहले ही लिख ली थी परन्तु रामायण की घटना तो बाद में घटी इसका मतलब यह हुआ कि रामायण के सारे पात्र बाल्मिक की रामायण का अभिनय कर रहे थे। हम ऐसा ही अपने जीवन के लिए सोच सकते है कि हमारी कहानी भी पहले ही लिखी जा चुकी हम सिर्फ अभिनय कर रहे हैं तो जीवन बहुत आसान व आनंदपूर्ण हो जायेगा । पर आश्चर्य तब हुआ जब मैंने देखा कि बिलकुल यही बात ओशो ने भी अपनी किसी किताब में कहीं पर लिखी हुई थी तब मुझे लगा कि मैं भी इनके जैसा ही सोचती हूँ और सही दिशा में बढ़ रही हूँ । अब कोई आश्चर्य नहीं क्योंकि जो भी निसर्ग से जुड़ता है वो एक जैसा ही सोचता है,क्योंकि ज्ञान का स्रोत्र तो एक ही है। ओशो लाओत्जे और बुद्ध जैसे लोग कसौटी अपने आप को कसने के लिए कि हमारी प्रगति सही दिशा में हो रही या नहीं ।
- सीमा आनंदित
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anger



हमारे संत महात्मा कहते हैं कि काम क्रोध मद लोभ ईर्ष्या छोड़ दो, अध्यात्मिक उन्नति व आनंद पूर्ण जीवन जीने में ये बाधक है । यह उनकी करुणा है वे नहीं चाहते कि हम उन विषादों को झेले जो कि उन्होंने झेले हैं । हमें लगता है कि हमें बहुत ही नैतिकता और सदाचार का उपदेश दिया जा रहा है । मैं तो कहती हूँ बिलकुल भी विश्वाश मत करो उनकी बातो का क्या पता झूठ ही बोल रहे हो, हो सकता है इससे दूसरे का भला हो रहा हो अपना नुकसान हो रहा हो ,बिलकुल मत छोडो बल्कि और जोर से पकड़ो शर्त यह है कि इन भाव का पूरा आनंद उठाओ क्योंकि मजा आरहा है तभी तो नहीं छोड़ पा रहे हैं इसलिए जब क्रोध आये ईर्ष्या जगे घृणा उत्पन्न हो तो आराम से बैठ जाओ पूरा लुत्फ़ उठाओ फिर ये नहीं करना कि चलो टीवी देख लेते है या संगीत सुन लेते है या किसी के साथ गप शप कर लेते है टालना बिलकुल नहीं है क्योंकि हम और दूसरी जगह अपने आप को उलझा लेते है तो पूरा आनंद नहीं उठा पाते है जो भी काम करो उसे पूरी पूर्णता के साथ करो तब हमें पता चलेगा कि जब क्रोध आता है तब कैसे अंदर सब कुछ जलता है आग तो ऊपर ऊपर ही जलाती है क्रोध तो अंदर तक जला देता है ईर्ष्या ऐसा जहर भरती है ऐसा जहर तो सांप के काटने से भी नहीं फैलता घृणा का भाव जगे तब अपना चेहरा शीशे में देख लेना अपने से ज्यादा भीभत्स कोई दूसरा नहीं लगेगा फिर दोबारा घृणा नहीं कर पाओगे और जब प्यार का भाव जगे तब भी अपने आप को शीशे में देख लेना तब अपने से ज्यादा सुन्दर कोई नहीं लगेगा । जब हम किसी काम को पूर्णता से कर लेते हैं तो उससे छूट जाते हैं यदि हम इन भाव को पूरी सम्रगता से जी ले तो दोबारा काम क्रोध घृणा ईर्ष्या नहीं कर पायेगें तब फिर जो बचेगा वो केवल करुणा व प्यार होगा फिर तो अमृत ही अमृत बरसेगा और तब तो सिर्फ बाँटना ही है।अब हमें अपने अनुभव से पता होगा किसी और के अनुभव से नहीं कि आग जलाती है, जान बूझकर तो आग में हाथ नहीं डालेगें इतनी बुद्धि तो हममें है। यही है साक्षी भाव ।
- सीमा आनंदिता
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relaxtation



सबसे अनमोल क्षण है विश्राम के । संसार में वही धनवान हैं जो जब चाहे विश्राम कर सकें सबसे गरीब वे लोग जो चाह कर भी विश्राम न कर सके ।
सीमा आनंदिता
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feminine



अध्यात्म के मार्ग में स्त्रीत्व गुण रखने वाले लोगो की उन्नति शीघ्र होती है बजाय पुरुषत्व गुण रखने वालो के क्योंकि स्त्रीत्व गुण वाले लोगो में अपेक्षा कृत अहंकार कम होता है उनमे ज्यादा लोच होती है वे ज्यादा तरल होते हैं । उनमे ऊर्जा का प्रवाह निर्बाध होता है ।
सीमा आनंदिता
—.
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wheel

November 15

संसार में हर चीज का रिपीटीशन है| हर चीज जहाँ से शरू होती है फिर वहीं पहुँच जाती है संसार की गति वर्तुल हैं इसे ही संसार चक्र कहते हैं सुबह होती है दिन होता रात होती है फिर सुबह हो जाती है । जन्म होता है बच्चे होते जवान होते बूढ़े होते मृत्यु हो जाती फिर जन्म हो जाता । गर्मी बरसात सर्दी फिर गर्मी आ जाती ,पतझर होता वसन्त आ जाता फिर पतझर हो जाता । सुख होता फिर दुःख आ जाता। यही संसार की प्रकृति अर्थात स्वभाव हैं । इसी चक्र में हम जन्मो जन्मो कोल्हू के बैल की तरह घूमते रहते है । यहाँ प्रकृति ही सब कुछ करती है हम बस निभाते जाते हैं मशीन की तरह हमारी कोई मर्जी नहीं होती । जो ठहर जाता है वह इस चक्र से बाहर निकल जाता है फिर वह प्रकृति का हिस्सा नहीं रहता अब उसकी स्वयं कि मर्जी है । अब वह परमात्मा हुआ अपनी मर्जी का मालिक अब वह आवागमन से मुक्त हुआ उसके लिए अब प्रकृति सो गयी और परमात्मा जग गया । मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जिसे अपने होने का एहसास होता है यदि वो जाग्रत है, वरना तो प्रकृति के सारे जीव मूर्छित अवस्था में होते हैं उन्हें अपने होने का एहसास नहीं होता है वे इसी चक्र में घूमते रहते हैं । जो मनुष्य जाग जाता है फिर वह रुक जाता है अब वह इस चक्र का हिस्सा नहीं रहता अब वह इस चक्र के बाहर हुआ व समय चक्र से भी बाहर हुआ अब उसकी मर्जी उसे संसार में आना हो आये ना आना हो ना आए जहाँ जन्म लेना हो ले अब वह स्वयं अपने लिए चुनाव करता है प्रकृति नहीं करती है अब वह परमात्मा है वह हर क्षण नया है वहाँ रिपीटीशन नहीं है जो अपनी मर्जी का मालिक वही परमात्मा हुआ । अभी तो हम प्रकृति के हाथ का खिलौना है, पता नहीं कब सुखी हो जाएँ पता नहीं कब दुखी हो जाएँ । हमें इस चक्र से छुड़ाने कोई नहीं आएगा हमें स्वयं ही प्रयास करना होगा ।अब क्या प्रयास करें कैसे करें इसके लिए कभी कभी प्रतिदिन के रूटीन से अपने को कुछ समय के लिए अवकाश देना चाहिए । कहीं एकांत वास में जाएँ घडी को बंद कर दें जब भूख लगे तब खाएं जब प्यास लगे तब पानी पियें जब नींद आए तब सोएं शरीर की सुनें दिमाग की नहीं । इस तरह के अभ्यास से समय चक्र से बाहर निकलने लगते हैं व संसार में रहते हुए भी संसार चक्र से धीरे धीरे बाहर होने लगते हैं ।
- सीमा आनंदित्ता
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ek onkar satnaam



"एक ओंकार सत नाम, सत श्री अकाल " गुरु नानक के इन वचनो में सारा आध्यात्म समाया हुआ है । जब हम बहुत गहरे विश्राम में होते है तब हमारे प्राण सुषुम्ना नाड़ी में बहते हैं, उस समय यह ओंकार ध्वनि सुनी जा सकती है । परन्तु हम गहरी नींद में होने के कारण यह ध्वनि नहीं सुन पाते हैं । जो लोग गहरे ध्यान में उतरते हैं वे इस ध्वनि को स्पष्ट सुन पाते है- यही है समाधि की स्थिति। इस समय सांस की गति बहुत ही धीमी हो जाती है । अब प्रश्न यह है कि यह ध्वनि क्यों सुननी चाहिए ? इसका क्या प्रयोजन है ?क्या इससे स्वर्ग कि प्राप्ति होगी या कोई मोक्ष होगा ? स्वर्ग और मोक्ष का तो पता नहीं परन्तु हम इस धरती पर रहते हुए जरुर आनंदित हो जायेगें और यही सच्चा रिलैक्सेशन है । वास्तव में रिलैक्सेशन वही है जिसका हमे पता चले यानि हम होश में हो वरना जब नींद आती है हम सो जाते है ,जब नींद पूरी हो जाती हैं हम जग जाते हैं, सोने और जागने के बीच क्या हुआ हमे कुछ नहीं पता होता । इसका पता क्यों होना चाहिए? क्योंकि यही है सम्पूर्ण विश्राम और इसीमे आनंद है । हम हमेशा बाह्य माध्यम में आनंद खोजते है क्योकि हम अकेले अपने साथ नहीं रह सकते । अकेले बैठते ही हजारो विचार हमारे दिमाग में चलने लगते है जो हमे थका देते हैं । जागे होते है तब विचार चलते है, सोते है तब सपने ,जिसके कारण हम गहरी नींद से भी वंचित रह जाते है । हम रिलैक्स तभी हो पाते हैं जब निर्विचार हों ,तब इसके लिए हम दूसरे माध्यमो में अपने को व्यस्त कर लेते है और थक कर सो जाते हैं -यह है बेहोशी का रिलैक्सेशन । हम ज्यादा धन भी इसीलिए अर्जित करते है कि इससे आनंद प्राप्त कर सकें ,बचत भी इसीलिए करते है कि बाद में आनंद करेगे । ये बात अलग है कि ऐसा कभी हो नहीं पाता । जो इस ध्वनि को सुनता है वह सम्पूर्ण विश्राम की अवस्था में होता है व हर क्षण आनंद में रहता है । उसकी आवश्यकताएँ बहुत कम रह जाती है । जितनी शरीर की जरुरत पूरी करने के लिए आवश्यक है बस उतनी ही रह जाती है और शरीर की जरूरते तो बहुत कम हैं । ऐसा व्यक्ति समयातीत हो जाता है ,वह हर क्षण वर्त्तमान में रहता है । वर्त्तमान शाश्वत है, जो शाश्वत है वही सत्य है ,जो सत्य है वही शिव है और जो शिव है वही सुन्दर है । भूत और भविष्य अब ऐसे व्यक्ति के लिए समाप्त हो गए -यही है सत श्री अकाल अर्थात समय से परे यानि टाइमलेसनेस यानि समयातीत यानि अकाल जहाँ अहंकार शून्य हो जाता है। जिसको जितना ज्यादा समय का बोध होता है उतना ही ज्यादा उसमें ईगो होता है । अगर संत सीधे कहें कि विश्राम करो तो हमे लगेगा कि यह कौन सी नयी बात है सो संत इसके परिणाम की बात कहते है कि ओंकार की ध्वनि सुनो क्योंकि हमें हर समय कुछ न कुछ करने की आदत है सरल सीधी बात हमारी समझ में नहीं आती है ।
- सीमा अनंदिता
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happiness



नानक ,बुद्ध, कबीर, ईसा मसीह और महावीर जैसे लोग आखिर विशेष क्यों हैं ? इनमे और हममें क्या अंतर है ?क्यों हम इन जैसे या ये हमारे जैसे नहीं हैं ?क्या परमात्मा ने हमारे साथ कोई भेद भाव किया या उनको कुछ विशेष दिया ?जब कि वो परम पिता है और उसके लिए उसकी सब सन्तान बराबर हैऔर यदि वो सबको एक सा प्यार करता है तो फिर एसा क्योँ ?परमात्मा ने तो सबको बराबर ही सब कुछ दिया हुआ हैं। अंतर यह है कि इनको जो परम पिता से मिला था उन्होंने उसको छोड़ा नहीं ,बड़े जतन से उसको सम्भाले रखा । इस धरती पर यात्रा करने आये थे और एक यात्री कि तरह यात्रा कर के चले गए और जो परमात्मा से लाये थे निर्दोषता निश्छलता निर्मलता वही वापस लेकर गए । कबीरदास कहते ही है कि - दास कबीर जतन से ओढ़ी ज्यों की त्यों धर दीन्ही चदरिया - पर हम लोग अपनी आत्मा की चदरियां को मलिन कर लेते हैं और यहाँ ऐसे रहने लगते हैं जैसे कि हमेशा यहीं रहना है व परमात्मा के पास नहीं लौटना जिसके कारण निर्मलता व निश्छलता छूट जाती है । बस यही है अंतर हममें और इनमें और यही बातें इनको विशेष बनती हैं ।
-सीमा आनंदिता
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god



परमात्मा बहुत भोला है उसे सिर्फ बढ़ाना ही आता है, वह सिर्फ प्लस ही जानता है, घटाना यानि माइनस नहीं आता है हम ज्यादा होशियार है हमे प्लस माइनस दोनों ही आता है ,हम नकारात्मक सोचते है हम सोचते है कि हम दुखी है तो परमात्मा हमारा दुःख घटाएगा बस यहीं चूक जाते हैं | वह मजबूर हैं ,वह हमारी कोई भी चीज को घटा नहीं सकता । हम जो भी करते हैं परमात्मा उसको बढ़ा देता है हम दुखी है तो दुःख बढ़ा देता है हम आनन्दित हैं तो आनंद बढ़ा देता है । न वो हमारा सुख घटा सकता हैं न ही दुःख घटा सकता है क्योकि उसको माइनस करना नहीं आता है इसलिए हम जीवन में जो भी बढ़ाना चाहते हैं वही सोचें परमात्मा अपना कार्य करेगा बढ़ाने का ।
- सीमा आनंदिता
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Wednesday, November 13, 2013

emotions



हमारे संत महात्मा कहते हैं कि काम क्रोध मद लोभ ईर्ष्या छोड़ दो, अध्यात्मिक उन्नति व आनंद पूर्ण जीवन जीने में ये बाधक है । यह उनकी करुणा है वे नहीं चाहते कि हम उन विषादों को झेले जो कि उन्होंने झेले हैं । हमें लगता है कि हमें बहुत ही नैतिकता और सदाचार का उपदेश दिया जा रहा है । मैं तो कहती हूँ बिलकुल भी विश्वाश मत करो उनकी बातो का क्या पता झूठ ही बोल रहे हो, हो सकता है इससे दूसरे का भला हो रहा हो अपना नुकसान हो रहा हो ,बिलकुल मत छोडो बल्कि और जोर से पकड़ो शर्त यह है कि इन भाव का पूरा आनंद उठाओ क्योंकि मजा आरहा है तभी तो नहीं छोड़ पा रहे हैं इसलिए जब क्रोध आये ईर्ष्या जगे घृणा उत्पन्न हो तो आराम से बैठ जाओ पूरा लुत्फ़ उठाओ फिर ये नहीं करना कि चलो टीवी देख लेते है या संगीत सुन लेते है या किसी के साथ गप शप कर लेते है टालना बिलकुल नहीं है क्योंकि हम और दूसरी जगह अपने आप को उलझा लेते है तो पूरा आनंद नहीं उठा पाते है जो भी काम करो उसे पूरी पूर्णता के साथ करो तब हमें पता चलेगा कि जब क्रोध आता है तब कैसे अंदर सब कुछ जलता है आग तो ऊपर ऊपर ही जलाती है क्रोध तो अंदर तक जला देता है ईर्ष्या ऐसा जहर भरती है ऐसा जहर तो सांप के काटने से भी नहीं फैलता घृणा का भाव जगे तब अपना चेहरा शीशे में देख लेना अपने से ज्यादा भीभत्स कोई दूसरा नहीं लगेगा फिर दोबारा घृणा नहीं कर पाओगे और जब प्यार का भाव जगे तब भी अपने आप को शीशे में देख लेना तब अपने से ज्यादा सुन्दर कोई नहीं लगेगा । जब हम किसी काम को पूर्णता से कर लेते हैं तो उससे छूट जाते हैं यदि हम इन भाव को पूरी सम्रगता से जी ले तो दोबारा काम क्रोध घृणा ईर्ष्या नहीं कर पायेगें तब फिर जो बचेगा वो केवल करुणा व प्यार होगा फिर तो अमृत ही अमृत बरसेगा और तब तो सिर्फ बाँटना ही है।अब हमें अपने अनुभव से पता होगा किसी और के अनुभव से नहीं कि आग जलाती है, जान बूझकर तो आग में हाथ नहीं डालेगें इतनी बुद्धि तो हममें है। यही है साक्षी भाव ।
- सीमा आनंदिता
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Monday, November 4, 2013

universe




ब्रह्मांडीय ऊर्जा सबमें बहना चाहती है क्योंकी वही प्राण है .उसके द्वारा ही हम जीवंत है । वह ऐसे लोगो को खोजती है जिनके द्वारा वह पृथ्वी पर अवतरित हो सके व उनके माध्यम से और लोगो तक पहुँच सके, वही हमारा जीवन स्रोत्र है । इसलिए ऐसे लोग जो शांत हैं ध्यान में लीन है भले ही वे कुछ न भी कर रहे हो पर वे बहुत बड़ा कार्य कर रहें हैं । वे माध्यम है संसार तक उस जीवन स्रोत्र को पहुँचाने का , उनके द्वारा ब्रह्मांडीय ऊर्जा पृथ्वी पर आ रही है व सबको जीवंत व चार्ज कर रही है ।
- सीमा आनंदिता



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Sunday, November 3, 2013

gold


संसार में जो भी चीज कम है वो मूल्यवान है जैसे सोना क्यौंकि कि वो कम लोगो के पास है । जिसके पास है, वो उसकी प्रतिष्ठा का विषय हो जाता है| स्वर्ण को दिया हुआ मूल्य भी हमारा ही दिया हुआ है क्यौंकि कि वो कम है जिसके पास जितना ज्यादा वो उतना ही ज्यादा समाज में विशिष्ट और प्रतिष्ठित हो जाता है इसी लिए सोना मूल्यवान है |कभी ऐसा हो कि पीतल कम हो जाएँ सोना ज्यादा हो जाएँ तब लोग पीतल को मूल्य देने लगेगें पीतल मूल्यवान हो जायेगा । बच्चे सबसे ज्यादा सहज और प्रकृति से जुड़े होते हैं उनके सामने रंग बिरंगे पत्थर रख दो व सोना वो पत्थर उठाएगें न कि सोना । इसी लिए सोना प्राकृतिक रूप से सौंदर्य को बढ़ाने वाला नहीं है रंग बिरंगे मोती के आभूषण ज्यादा सुन्दर लगतें हैं । पर लोगो को समाज में अपनी प्रतिष्ठा दिखानी है तो कैसे दिखाएँ पुरुष तो गहने पहनते नहीं सो स्त्रियों गहने से लद जाती हैं इससे समाज में शान और हैसियत बढ़ती है एक तरह से वो अपने धन का प्रदर्शन कर रहें है । इसके लिए हमारे देश को भारी कीमत चुकानी पड़ती है सोने की पूरी खपत का अधिकांश भाग हमें विदेशो सेआयात करना पड़ता है जिस कारण देश के ऊपर आर्थिक बोझ बढ़ता जा रहा है । अगर हम स्वर्ण का लालच छोड़ दे तो ये हमारा देश प्रेम व सच्चे मायनों में हमारी देश भक्ति होगी । -
-- -सीमा आनंदिता
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Tuesday, October 29, 2013

love

समस्त भाव में सबसे महत्वपूर्ण भाव है प्रेम का, होना भी चाहिए सभी एक ही जीवन स्रोत से आयें हैं सभी  की  एक ही खोज है । प्रेम  ही वो झरना है जिसकी धारा हमारे हृदय  से बह  है और हमारी जड़ो को सींच रही वरना हम दिमाग तक ही सीमित रह जाते । दिमाग है शोषक और ह्रदय है पोषक ।जितना व्यक्ति हृदय  से जुड़ा रहता है उतना ही संवेदनशील होता है ।  संवेदनाओ से ही जीवन में रस है, संवेदनहीन  जीवन तो नीरस है ।  प्रेम पाने से ज्यादा महत्वपूर्ण है प्रेम करना क्योंकि प्रेम करने वाला व्यक्ति हृदय चक पर स्वतः ही स्थित हो जाता है उसे ध्यान करने कि आवश्यकता नहीं ।ध्यान और प्रेम कि घटना एक साथ ही घटती है । जिसने प्रेम किया वो ध्यान को उपलब्ध हो गया और जिसने ध्यान किया वो प्रेम को उपलब्ध हो गया । परन्तु हम प्रेम की  भीख माँगते है जब कि हम सम्राट है ।
                            =सीमा आनंदिता

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unconditional love

संसार में केवल एक ही रिश्ता है वो है माँ बेटे का ,जो भी रिश्ता अपनी चरम अवस्था पर पहुँचता है वो माँ बेटे का ही हो जाता है यहाँ तक कि जो पति पत्नी आपस में बहुत प्यार करतें हैं और प्यार कि इस उचांई को छूते हैं वे भी माँ बेटे जैसे हो जाते है इस को ही बे शर्त प्यार(unconditional love ) कहतें हैं । हमारे ऋषि आशीर्वाद देते है ..
पुत्रवती भव :
अंतत ..
तुम्हारा पति ही तुम्हारा पुत्र बन जाए
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Monday, October 28, 2013

yog

अष्टांग योग, सहज योग प्रेम योग या भक्ति योग ये सारे ही अलग अलग मार्ग है उस परम तत्व को पाने के लिए पर सब एक दूसरे के पूरक भी हैं । एक घटता है जब, तब दूसरा अपने आप ही घट जाता है अष्टांग योग में हम शरीर को बाह्य क्रिया से शुद्ध करते हैं | शरीर शुद्ध तो विचार भी शुद्ध हो जाते हैं | सहज योग में हम बुद्धि के द्वारा विचार को शुद्ध करते हैं ,विचार शुद्ध तो शरीर शुद्ध हो जाता है व सारी उर्जा घनीभूत होकर सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश करती है | प्रेम योग या भक्ति योग इसमें हम किसी से इतना प्यार करने लगें कि हमारी सारी और उर्जा एकीकृत होकर ऊर्ध्वगामी हो जाए । हम उसी ऑर खिंचते हैं जो हमसे ज्यादा उर्जावान है धीरे धीरे उर्जा का स्तर एक होने लगता हैं तब दो नहीं एक हो जाते हैं तब द्वैत नहीं रह जाता अद्वैत होता हैं | जहाँ प्रेम है वहां ध्यान की घटना अपने आप ही घट जाती है जहाँ ध्यान है वहां प्रेम घट जाता है। इस प्रकार सब एक दूसरे के पूरक हैं । सहज योग नाम ही है सहज तो सरल तो होगा ही पर जब उम्र ज्यादा हो जाती है तब कोई सहज योग से साधना करता है तो थोडा मुश्किल होता है क्योकि उम्र बदने के साथ शरीर में कार्बन की ज्यादा मात्रा एकत्र हो जाती है जिस कारण शरीर का लचीलापन कम हो जाता है तब उर्जा प्रवाह ऊपर की ओर होना कठिन हो जाता है ,ऐसे में अष्टांग योग का सहारा लेना चाहिए जिस में शरीर शुद्ध होकर लचीला हो जाता है और उर्जा सहज ही ऊर्ध्वगामी होने लगती है और हम धीरे धीरे निर्विचार होकर उस परमतत्व के साथ एकीकृत होने लगते हैं ।
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Sunday, October 27, 2013

sin

पाप पुण्य  का हिसाब परमात्मा नहीं रखता उसके पास इतनी फुरसत  ही नहीं कि वो  एक एक मनुष्य का लेखा  जोखा रखे  । उसके लिए पापी और पुण्यात्मा एक बराबर हैं दोनों के लिए एक सा ही प्यार बरस रहा है यदि वही भेद करने लगा तो काहे का परमात्मा हुआ । अपने पाप और पुण्य  का हिसाब   हम ही स्वयं रखतें है । जब हम कोई ऐसा कार्य करतें हैं जिससे हमें ग्लानि होती है तब  हमारा चेतना  का स्तर नीचे गिर जाता है यही पाप है तो चेतना का स्तर गिरा कि पाप हुआ  और जब हम कोई ऐसा कार्य करतें है जिससे कि चेतना स्तर ऊपर उठ जाता हैं तो यही पुण्य है । भगवान  बुद्ध ने कहा है कि होश में रहकर जो भी कार्य किया जाता है वो पुण्य  है और जो बेहोशी में किया जाए वो पाप है।मूर्छा में किया गया दान भी पाप है  । हर समाज में व  हर काल में  पाप और पुण्य  की,अलग अलग मान्यताएं होती है आज जो मान्य है हो सकता वो पुराने समय में मान्य  न हो या किसी और समाज में मान्य  न हो तब हम उस कार्य को करें तो हमें ग्लानि होगी। जब हम नैसर्गिक  नियमों  से जुड़े होते हैं यानी प्रकृति के नियमों  को मानते है तब हर काल व हर समाज के लिए वहां एक सी ही मान्यताएं होती हैं तब  न पाप होता  न पुण्य जो उचित है वही होता है । चोरी करना पाप हैं पर  यदि कोई भूखा रोटी चुरा रहा है तो पापी वो नहीं है हम सब उसके जिम्मेदार हैं उसके हिस्से का खाना उसको नहीं मिला किसी के पास ज्यादा चला गया प्रकृति सब का पेट भरने के लिए सक्षम हैं ।
                                        - सीमा आनंदिता

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माँ की ममता /mother's love

बांहें फैलाती, मुझको उठाती, सीने से अपने लगाती - वो माँ थी
लोरी सुनाती, सर थपथपाती, मुझे नींद में चूम जाती - वो माँ थी ।


बचपन का मेरे वोही आसमां थी , आँचल था उस का चमन सा
मैं उसकी बगिया का फूल प्यारा ,चन्दा था उस के गगन का
हर शाम छत से, चन्दा दिखाती, माथे पे टीका लगाती- वो माँ थी
लोरी सुनाती, सर थपथपाती, मुझे नींद में चूम जाती - वो माँ थी ।


कभी जो बनाती थी माँ खीर घर में, बड़े प्यार से बाँटती थी
छुट पुट शरारत जो करता कभी तो, मुझे आँखों से डांटती थी
इशारे से मुझ रूठे को फिर मनाती, इक प्याला ज्यादा खिलाती -वो माँ थी
कभी रूठ कर अपना गुस्सा दिखाती, मेरे हंसने से फिर मान जाती -वो माँ थी

                                                                                                  --आनन्द बिहारी

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Saturday, October 26, 2013

sun

सूरज बोला एक दिन पापा से
मुझको भी चाहिए एक छुट्टी ।
चंदा को तो  मिलती पूरी एक छुट्टी
महीने में एक ही दिन आता है वो पूरा
बाकी दिन आता है आधा पौना  और चौथाई
मेरी नहीं है कोई भी छुट्टी
पापा बोले सुन बेटा
अगर तू लेगा छुट्टी
तो हो जाएगी
सब की   छुट्टी
                             सीमा आनंदिता

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Friday, October 25, 2013

infinity

कहीं तो ऐसा आयाम हो जिसमे जाकर मैं खो जाऊं
न समय का आभास हो बस अनंत का विस्तार हो
चाहे हम जी लें कितने साल जीतें हैं सिर्फ चौबीस घंटे
बंधे बंधाएं समय में यूँ ही गुज़र जाता सारा जीवन
अंत समय हाथ में  लगतें हमारें सिर्फ चौबीस घंटे
मुझे चाह उस आयाम की  जहाँ हो
अनंत से  अनंत का मिलन
फिर किसकी मृत्यु कैसी मृत्यु
मृत्यु तो कभी घटी नहीं
जीवन ही जीवन है
मरा तो कोई कभी नहीं
                     सीमा अनंदिता
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god is one

परमात्मा के यहाँ से तो हम सभी बिना लेबल के आतें है संसार में आकर धर्म जाति देश भाषा प्रान्त के लेबल लग जातें हैं। हम इंसान हैं यह लेबल भी, हमारा ही हमें दिया हुआ है ।परमात्मा के यहाँ से तो हम चेतना के अनुसार सृष्टि के प्राणियों से भिन्न हैं। हम में सृष्टि के और प्राणियों से ज्यादा चेतना है ।  पशु पक्षी को तो पता भी नहीं होता कि वे पशु पक्षी हैं  । हमें सब लेबल याद रहतें हैं बस वही भूल जातें हैं जो हमें परमात्मा ने दिया है।उसने हमे चेतना दी है, हमें  अपने आप को पहचानने की । हम  जिंदगी भर सारे लेबल ढोते रहतें हैं जोकि मरते समय यहीं सब भस्म हो जातें हैं।   परमात्मा ने हमे होश दिया है बस हम उस होश को   सतत  बनाए रहें।  उसने हमें चुनाव कि क्षमता  दी  है,चाहे तो  हम ऊर्ध्वगामी  हो जाएं व चाहे तो पतन की और चले जाएं । ये क्षमता सृष्टि के किसी और प्राणी के पास नहीं है ।  पर हम उस क्षमता का  गलत उपयोग करते हैं व  खंड खंड होकर उस उर्ज़ा को नष्ट करतें हैं जो कि हमें अखंड रहतें हुए  ऊर्ध्वगामी कर सकती थी जिससे हम देवता बन सकतें थे । देवता तो छोड़ो इंसान ही बनें रहें तो बहुत बड़ी बात होगी ।ये लेबल हमारे ऊर्ध्वगमन गमन में  सहायक न होकर बाधक हैं । इनको उतार फेंकनें में ही समझदारी है ।
                          -   सीमा अनादिता

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Thursday, October 24, 2013

love

परमात्मा क्या है ? प्रेम की अनंत बूंदों का जोड़ । जब पत्नी अपने पति को प्रेम करती है ,तब बच्चे  उसे अपने पति का पुनर्जन्म मालूम पड़ते हैं । फिर वही शक्ल फिर वही रूप फिर वही निर्दोष आँखें जो उसके पति में छुपी हुईं थीं  फिर से प्रकट हुईं हैं बच्चे को किया गया प्रेम पति को किये गए प्रेम की प्रतिध्वनि है । पति ही फिर से बच्चे के रूप में पवित्र और नया हो कर लौट आया है ।  जब पति अपनी पत्नी को प्रेम करता है तो पत्नी भी उसे परमात्मा दिखाई देती है । बच्चा उस पत्नी का ही लौटता हुआ रूप है । पत्नी को जब पहली दफा देखा था ,तब वो जैसी निर्दोष थी ,तब वो जैसी शांत थी तब वो जैसी सुदर थी, तब उसकी आँखें जैसे झील के तरह थीं । इन बच्चो में फिर वही आँखें लौट के आयीं हैं। इन बच्चों में फिर उसकी पत्नी चेहरा लौट आया है ।  ये बच्चे फिर उसकी छवि में नए होकर आ गए हैं । जैसे पिछले वसंत में फूल खिले थे जैसे पिछले वसंत में पत्ते आये थे । फिर साल बीत गया ।पुराने  पत्ते गिर गए हैं । फिर नयी कोंपले निकल आईं,फिर नए पत्तों से वृक्ष भर गया । फिर लौट आया वसंत । फिर सब नया हो गया है  । जीवन निरंतर लौट रहा है ,निरंतर पुनर्जन्म चल रहा है ।
                                                             osho

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god is here

शिशु तू कितना  सहज व  कितना निश्छल
कोरी तेरी आँखें मौन है तेरी भाषा
भाव ही भाव हैं तेरे पास
उन्मुक्त तेरा हास
इसीलिए सब खिचतें तेरे पास
पर कुछ दिनों बाद
तू भी ऐसा ही हो जायेगा
हम जैसा
काश तू ऐसा ही रह पाता
कोरा और मासूम
                            -    सीमा आनंदिता

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Wednesday, October 23, 2013

boat


जो डूबा वो पार उतरा और जो किनारे बैठा रहा वो डूब गया
वेसे भी तो डूबना ही है तो फिर क्योँ न तुझमें ही डूब जाऊं
         -   सीमा आनंदिता
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dharm

धर्म की एक ही  परिभाषा हो सकती है जिस माहौल में जिस वातावरण  में श्रद्धा सहज ही उत्पन्न होती हो  और संदेह पैदा होना ही मुश्किल हो , पर अभी तो हालत उल्टी है । संदेह सहज है श्रद्धा करीब करीब असंभव है । हम अपनों पर ही श्रद्धा नहीं करते ,मित्र -मित्र पर भरोसा नहीं करता शत्रु की तो बात ही छोडो ,सारे संबंध ही संदेह के हैं  ।  जहाँ हर जगह संदेह हैं व हर अनुभव से संदेह हो तो वहां कम से कम ऐसा एक संबंध तो हो  जहाँ सारे संदेह उतार कर फेंक सकें ।
                                                       सीमा आनंदिता

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Tuesday, October 22, 2013

canvas

कुछ दिन से यह एहसास हो रहा है
जैसे कि सब कुछ कैनवास पर चल रहा है
चलते फिरते लोग बनती बिगडती लकीरे हों
जो कुछ उभर रही हैं और कुछ छुप रही हैं
सब कुछ मिश्रित हो रहा है
कुछ नया बन रहा है
तो कुछ पुराना खो रहा है
फिर भी पहचाना पहचाना  सा लग रहा है
                                    सीमा आनंदिता

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Monday, October 21, 2013

karwa chauth ki badhai

आप सभी को करवा चौथ की हार्दिक बधाई । आज का दिन हर उम्र की स्त्री के लिए विशेष दिन है
उस प्रथम दिन की एक बिसरी बिसरी सी मधुर स्मृति आज हर स्त्री की आँखों में सजीव हो उठती है ।
तो दादी हों या नानी, मामी हों या मौसी,चाची हों या बुआ और दीदी हों या भाभी -आज सब दुल्हन सी सजेंगी ।
आज चाँद भी भोंचक्का सा रह जायेगा छतों पे इतनी खूबसूरती देख कर :--

चन्दा मेरे लिए थोड़ा  रुक जाना
मेरे पिया जो घर आ जाएँ
आकर सीने से लग जाएँ
तब बादल में कहीं छुप जाना
चन्दा मेरे लिए थोड़ा  रुक जाना


है इंतज़ार मुझे शाम से ही उनका
रूठे तो नहीं यही सोचे मोरा  मनवा
तू तो है मेरा हमजोली ,संग संग खेली आँख मिचौली
अब तू ही बुला के उन्हें लाना , चन्दा .........


आयेंगे देर से जो आज मेरे सैंयाँ ,
कह दूंगी उन से जो पकड़ेंगे वैयां
आगे हाथ मेरे तुम जोड़ो ,देर से आना बिलकुल छोडो
मेरी हाँ में ही तुम हाँ मिलाना ,  चन्दा ......


तू तो जाने है मैंने सारा जीवन अपना ,
आँखों में पाला है ये प्यारा प्यारा सपना
मेरी मांग भरे सिन्दूरी , उन से रहे न कोई दूरी
आज तुम  ही उन्हें ये बतलाना , चन्दा .......


आते ही खोलूँगी मैं बाँहों की किवरिया ,
कर लूंगी बंद उनमें अपना सांवरिया
चले दूर कहीं तब जाना , सारी रात इधर न आना
रुक जाना न करके बहाना , चन्दा.........


चन्दा मेरे लिए थोड़ा रुक जाना ...


                                                 --------आनन्द बिहारी


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karwa chauth

आप सभी को करवा चौथ की बधाई ।
वर्ष में एक ही त्यौहार ये ऐसा है जिसमें हर उम्र की स्त्री पूरा श्रृंगार करती है
और दुल्हन सा सजने का अपना शौक पूरा करती है । करना ही चाहिए क्यों कि
वो दिन भुलाया ही नहीं जा सकता जिस दिन पिया से मिलन हुआ ।
तो लीजिये श्रृंगार के सब साधन प्रस्तुत हैं :--

चाँद ने हमको दी सौगात पिया मिला जो तेरा साथ ,
यूँ ही  ये  त्यौहार मनाएं जनम जनम हम तेरे साथ ।

परिणय का वो दिन प्यारा , जब दुल्हन का था किया श्रृंगार
आज वही दिन याद करें ,जब मिले थे तुम से पहली बार ।

हर जनम यूँ ही हम साथ रहें , न छूटे कभी ये हाथ
हम तुम हों या तुम हम हो, बस रहे यूँ ही ये साथ ।

साथ तेरा पाकर हुई पूरी, वरना रहती यूँ ही अधूरी
तुझ से ऐसे मिल जाऊं कि मिट जाए जन्मों की दूरी ।

तेरे रंग में रंगी हूँ ऐसे, तुझ बिन जीवन लगता व्यर्थ
अर्थ दिया जिसने जीवन को, देती उस चन्दा  को अर्क ।

                                                    --सीमा आनंदिता

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peace

परमात्मा है महाशांति - वहां मौन ही प्रविष्ट कर सकता है शांति ही उस परम शांति को छू सकती है उस जगत में शोर की आवश्यकता नहीं है । चिल्लाने की आवश्यकता तो हमे इस जगत में पड़ती है क्योँ कि यहाँ पर सभी व्यस्त  हैं परमात्मा तो महा विश्राम में है । इस जगत में लोगों के इतने विचार चल रहें हैं कि जब तक न चिल्लाओं वे नहीं सुनते,जब कि  परमात्मा तो महा शून्य है जरा सी  भी भाव की तरंग उस तक पहुँच जाती है । शांति ही उसकी प्रार्थना है । 
                                   ----  सीमा आनंदिता

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Sunday, October 20, 2013

dream

अब तो है यही लक्ष्य
बस मैं मिलूं तुमसे हर बार
अपने बस की बात नहीं पर
उम्मीद साथ है मेरे यार।
 ख्वाब हो ये या हो ये हकीकत
नहीं इनमें कोई अंतर
ये सच भी सपने जैसा है
चलता यहाँ निरंतर ।
                -----       सीमा आनंदिता

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dharm

विश्वाश में एक सुरक्षा है हम बनी बनायीं मान्यताओ को मानते चले जातें है । अविश्वाश करने में खतरा है हम अकेले खड़े है हमें अपना रास्ता स्वयं खोजना है इसलिए भीड़ के साथ चलने  में सुविधा  है । सत्य की खोज तभी हो सकती है जब हम असुरक्षित अनुभव करतें हैं एक तरह से मृत्यु से  हो कर गुजरना पड़ता है ,जहाँ सब कुछ अज्ञात है ,मनुष्य सुरक्षित रहना चाहता है । एक धर्म को मानने वाले एक ही धर्म को पीढ़ी दर पीढ़ी मानते चले जाते हैं दूसरे धर्मों के बारे उन्हें कोई  जानकारी ही नहीं होती है । सब मूर्छित  से चलते चले जाते हैं । कोई भी धर्म जब नया होता है तब वो मौलिक  होता है।  सब उसी एक की ओर इशारा करतें हैं झगडे की कोई बात ही नहीं लेकिन जैसे जैसे और चीज़ें उसमे जुडती जातीं हैं उसकी मौलिकता नष्ट होती जाती हैं इसीलियें नए नए धर्म और शाश्त्रों की आवश्यकता होती है वरना  तो वेद ही पर्याप्त थे ।
                               सीमा आनंदिता

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Saturday, October 19, 2013

yashodhra


जीवन नहीं छलावा एक हक़ीकत है
यशोधरा से बुद्ध को मिली नसीहत है
सत्य अगर है सत्य तो वो हर क्षण में है
जीवन के हर पथ में हर कण कण में है ।

अब प्रश्न कहाँ जीवन के इस-उस पार का
घर उपवन नदिया सागर मंझधार का ?
वन में ही था सत्य तो वापस आता क्यों ?
प्यार यशोधरा का मुझे बुलाता क्यों ?

ढूंढ़ रहे गर सत्य तो भटक न जाना तुम
अगर कहीं हो दूर तो घर आ जाना तुम
यही ज्ञान पाकर तो स्वयं मैं लौटा हूँ
यशोधरा के आगे आज मैं छोटा हूँ ।

भूल हुई जो मैंने घर को त्यागा था
तुमको और राहुल को छोड़ के भागा था
यशोधरा ! मेरा तप बहुत अधूरा है
सत्य तो बस तेरी आँखों का पूरा है ।
---आनन्द बिहारी
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saty narayan ki katha

बोलो सत्य नारायण भगवान  की जय । अब तक न जाने कितनी बार यह कथा हम सब ने सुनी होगी ,पर क्या मुझे कोई ये बताएगा कि सत्यनारायण की कथा आखिर है  क्या ?   क्योंकि अब तक  जो भी  सुनी  वो कथा सुनने न सुनने, प्रसाद  ग्रहण करने और न करने व कथा  बीच में छोड़कर जाने और पूरी कथा सुन ने के परिणाम की कथा है अर्थात यह कथा की कथा है तो सत्यनारायण भगवान   की  मूल कथा क्या है जो कि इस   कथा में लीलावती और कलावती व अन्य  पात्र सुन रहे हैं ।
                                                                                                                     ---  सीमा आनंदिता 

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बोलो सत्य नारायण भगवान  की जय । अब तक न जाने कितनी बार यह कथा हम सब ने सुनी होगी ,पर क्या मुझे कोई ये बताएगा कि सत्यनारायण की कथा आखिर है  क्या ?   क्योंकि अब तक  जो भी  सुनी  वो कथा सुनने न सुनने, प्रसाद  ग्रहण करने और न करने व कथा  बीच में छोड़कर जाने और पूरी कथा सुन ने के परिणाम की कथा है अर्थात यह कथा की कथा है तो सत्यनारायण भगवान   की  मूल कथा क्या है जो कि इस   कथा में लीलावती और कलावती व अन्य  पात्र सुन रहे हैं ।
                                                                                                                     ---  सीमा आनंदिता 

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state of mind

मन
                                                                                                                                             ---      सीमा आनंदिता
सदा दूसरे में खोजता है सुख और  थोपता है दुःख । दूसरे  से चाहता है शांति और प्यार पर  मिलती है अशांति । जबकि हम दुखी और सुखी अपने ही कारण होते हैं यदि हम दुखी न होना चाहें  तो हमें  कौन दुखी कर सकता है । दुःख है मानसिक व कष्ट है शारीरिक जब हम भूखे प्यासे  या बीमार होते हैं तब शरीर को कष्ट अनुभव होता है, उस समय दुःख नहीं होता ।  इसीलिए  जब कभी हम अस्वस्थ होते हैं तब लगता है जल्दी से स्वस्थ हो जायें, उस समय समझ में आता है कि निरोगी काया से  बड़ा कोई सुख नहीं है ।
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Friday, October 18, 2013

shashtra

स्वयं के द्वारा किया गया अनुभव ही  स्वयं का शाश्त्र है  । जिसने शास्त्र लिखे वो उनके स्वयं के अनुभव होगें ,उनके अनुभव हमारे अनुभव नहीं हो सकतें,हाँ थोड़ी  सी सूचना जरुर  दे सकतें हैं हमारी स्वयं की  यात्रा  के लिए । शाश्त्रो में लिखा है कि आत्मा अमर हैं यह  सूचना हमें शास्त्र से मिलती है  परन्तु यह सूचना सत्य है कि असत्य जो उसको जानने का  प्रयत्न करतें हैं व लिखी लिखाई बात को सत्य मानकर नहीं बैठ जातें हैं,उन लोगो के लिए शाश्त्र सहारा है उनकी अपनी खोज के लिए ।  हमारे अनुभव के अनुसार हमारे शास्त्र होने चाहिएं न कि शाश्त्र के अनुसार हमारे अनुभव ।
                                            -   सीमा आनंदिता

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Thursday, October 17, 2013

mirror



हमारा चेहरा पहचान है, दूसरो के लिए वे हमें  हमारें  चेहरे  से पहचानतें हैं । हमें अपनी पहचान के लिए दर्पण देखने की आवश्यकता नहीं बल्कि अपने अंदर झाँकने की आवश्यकता है ।
                                                       -  सीमा आनंदिता



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